पौधों में पोषण (Nutrition in Plants)
पोषण जीवधारियों का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है। पौधों में एक साथ ऐसे अनेक कार्य सम्पन्न होते रहते हैं जिनमें ऊर्जा का ह्रास होता रहता है और यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है, अतः सभी पौधे विभिन्न विधियों द्वारा अपना भोजन प्राप्त करते हैं। पौधों द्वारा अपना भोजन प्राप्त करने अथवा अपने लिये भोजन निर्माण करने की विधि को पोषण (nutrition) कहते हैं।
पोषण की विधियों के आधार पर पौधों को निम्न दो वर्गों में बाँटा गया है-
- स्वपोषित पौधे (Autotrophic plants)
- परपोषित पौधे (Heterotrophic plants)
1. स्वपोषित पौधे या स्वपोषपादप (Autotrophic plants or Autophytes)
इस वर्ग में वे पौधे आते हैं जो अपने लिये कार्बनिक भोज्य पदार्थ स्वयं बना लेते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
• रसायन-स्वपोषित (Chemo-autotrophic) = रसायन-संश्लेषणी (Chemosynthetic) - कुछ जीवाणु (bacteria) अपना भोज्य पदार्थ प्रकाश की अनुपस्थिति में भी बना लेते हैं। ये भोज्य पदार्थों के संश्लेषण के लिये कुछ अकार्बनिक पदार्थों के जैविक ऑक्सीकरण (biological oxidation) से प्राप्त ऊर्जा को ही प्रकाश ऊर्जा के स्थान पर प्रयोग में लाते हैं। इस प्रकार इस क्रिया में रासायनिक ऊर्जा के प्रयोग द्वारा संश्लेषण होता है, अतः इस क्रिया को रासायनिक-संश्लेषण (chemical synthesis or chemosynthesis) कहते हैं। उदाहरण-नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas), नाइट्रोसोकोकस (Nitrosococcus), आदि जीवाणु।
• प्रकाशीय-स्वपोषित (Photo-autotrophic) = प्रकाश-संश्लेषणी (Photosynthetic) - ये पौधे हरे होते हैं तथा पर्णहरिम की सहायता से प्रकाश की उपस्थिति में वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) तथा भूमि से जल (H2O) लेकर कार्बनिक भोज्य-पदार्थ बना लेते हैं। इस क्रिया को प्रकाश-संश्लेषण (photosynthesis) कहते हैं। इन पौधों में पृथ्वी से नाइट्रोजन यौगिकों का अवशोषण करके प्रोटीन निर्माण की सामर्थ्य होती है। इन्हीं कारणों से इन पौधों को स्वपोषित (autotrophic) कहते हैं, जैसे सरसों का पौधा, आम का वृक्ष, आदि। अकार्बनिक पोषण में ये पौधे जड़ों द्वारा भूमि से विभिन्न खनिज पोषकों (mineral nutrients) का अवशोषण करते हैं।
जड़ों द्वारा खनिज पोषकों का अवशोषण (Absorption of Mineral Nutrients by Roots)
जड़ों द्वारा खनिजों का अवशोषण एक जटिल प्रक्रिया है जिसका वर्णन निम्नलिखित भागों में किया जा सकता है-
(1) जड़ों को खनिजों की उपलब्धता (Availability of minerals to the roots) - मृदा की पोषक तत्वों को रोके रखने की क्षमता मुख्यतः चिकने मृदा कणों (clay particles) की संरचना पर निर्भर करती है। चिकने कणों की रचना परतनुमा (sheet like) होती है, इन्हें मिसेल (micelles) कहते हैं। अपने वास्तविक स्वरूप में ये मिसेल सिलिका आयनों (Si⁴+) की अधिक मात्रा से सम्बद्ध रहते हैं। कालान्तर में सिलिका आयन प्रायः ऐलुमिनियम आयन (Al³+) से और बाद में मैग्नीशियम आयन (Mg²+) तथा आयरन आयन (Fe²+) से विस्थापित (replace) कर दिये जाते हैं। इस विस्थापन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप चिकने मृदा कणों (micelles) की सतह ऋणात्मक आवेशित (negatively charged) हो जाती है।
मृदा विलयन में उपस्थित विभिन्न धनायन (cations), जैसे Ca²+, Mg²+ तथा K+, आदि विद्युत् आकर्षण के कारण मिसेल (चिकने मृदा कण) की ऋणात्मक आवेशित सतह से चिपके रहते हैं। धनायनों का इस प्रकार से मिसेल कणों से चिपकना या बँधना लाभकारी है, इसी कारण से सिंचाई तथा वर्षा जल के साथ विभिन्न धनायन मृदा कणों से पृथक् होकर बह नहीं पाते हैं। इसके विपरीत ऋणायन (anions) स्वतन्त्र रहते हैं, ये मृदा कणों से सम्बद्ध नहीं रहते।
धनायनों की उपलब्धता (Availability of cations) - मूलरोम मृदा से धनायनों को धनायन विनिमय प्रक्रिया (cation exchange process) द्वारा प्राप्त करते हैं। इस प्रक्रिया में मूलरोम से मृदा विलयन में हाइड्रोजन आयन (H+) मुक्त होते हैं। ये H+ आयन मृदा कणों की सतह से चिपके पोषक तत्वों (धनायनों) को पृथक् कर देते हैं और ये धनायन जड़ों को प्राप्त हो जाते हैं।
Micelle - Ca²+ + 2H+ → Cation exchange → H+ – Micelle – H+ + Ca²+ (Ca²+ को जड़ें अवशोषित कर लेती हैं)
धनायन विनिमय की क्रिया जड़ों की श्वसन (respiration) क्रिया में मुक्त CO2 के कारण बढ़ जाती है। जड़ों की श्वसन क्रिया में मुक्त CO2 जल के साथ घुलकर कार्बनिक अम्ल (H2CO3) बनाती है, यह शीघ्र ही HCO3- तथा H+ आयनों में टूट जाता है। ये H+ आयन फिर मिसेल से धनायनों को विस्थापित करते हैं और इस प्रकार धनायन जड़ों को प्राप्त हो जाते हैं।
धनायनों की उपलब्धता (Availability of cations) - मूलरोम मृदा से धनायनों को धनायन विनिमय प्रक्रिया (cation exchange process) द्वारा प्राप्त करते हैं। इस प्रक्रिया में मूलरोम से मृदा विलयन में हाइड्रोजन आयन (H+) मुक्त होते हैं। ये H+ आयन मृदा कणों की सतह से चिपके पोषक तत्वों (धनायनों) को पृथक् कर देते हैं और ये धनायन जड़ों को प्राप्त हो जाते हैं।
Micelle - Ca²+ + 2H+ → Cation exchange → H+ – Micelle – H+ + Ca²+ (Ca²+ को जड़ें अवशोषित कर लेती हैं)
धनायन विनिमय की क्रिया जड़ों की श्वसन (respiration) क्रिया में मुक्त CO2 के कारण बढ़ जाती है। जड़ों की श्वसन क्रिया में मुक्त CO2 जल के साथ घुलकर कार्बनिक अम्ल (H2CO3) बनाती है, यह शीघ्र ही HCO3- तथा H+ आयनों में टूट जाता है। ये H+ आयन फिर मिसेल से धनायनों को विस्थापित करते हैं और इस प्रकार धनायन जड़ों को प्राप्त हो जाते हैं।
चिकने मृदा कणों में ऋणावेश के कारण उच्च धनायन विनिमय क्षमता (high cation exchange capacity) होती है। इसके विपरीत बालू कणों में कोई आवेश नहीं होता। अतः इनकी धनायन विनिमय क्षमता कम होती है। बालू कणों से धनायन जुड़ नहीं पाते और वर्षा जल के साथ मृदा से विभिन्न धनायन शीघ्र ही बह जाते हैं। इस प्रकार बालुई मृदा (sandy soil) प्रायः पोषक तत्वों से न्यून (nutrient deficient) होती है, अर्थात् बालुई मृदा में पोषक तत्व कम मात्रा में होते हैं और यह मृदा खेती के लिये अधिक उपयुक्त नहीं होती जबकि उच्च धनायन विनिमय क्षमता वाली मृदा खेती के लिये उपयुक्त होती है।
यद्यपि उच्च धनायन विनिमय क्षमता की मृदा का एक प्रमुख दोष यह है कि मिसेल (चिकने मृदा कण), H+ आयन के साथ मिलकर अम्लीय हो जाते हैं। यदि इस प्रक्रिया को नियन्त्रित न किया जाये तो मृदा की pH 3 या 4 तक गिर जाती है और इससे पोषक तत्वों की availability प्रभावित होती है और पौधों की पोषक तत्वों के अभाव में वृद्धि रुक जाती है।
ऋणायनों की उपलब्धता (Availability of anions) — धनायनों के विपरीत विभिन्न ऋणायन, जैसे NO3-, CO²-3, आदि मृदा कणों के साथ बँधे नहीं होते। ये अबन्धित ऋणायन (unbound anions) आसानी से पौधों को उपलब्ध हो जाते हैं परन्तु ये आयन जल के साथ मिट्टी से शीघ्र बह जाने को तैयार रहते हैं। यही कारण है कि मृदा प्राय: नाइट्रोजन न्यून (nitrogen deficient) हो जाती है, अर्थात् मृदा में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है।
खनिज अवशोषण की क्रिया-विधि (Mechanism of Mineral Absorption)
(A) खनिजों का सक्रिय अवशोषण (Active Absorption of Minerals) — जड़ें अधिकांश खनिजों का अवशोषण निम्न चार चरणों में करती हैं
(i) मूलरोमों में सक्रिय परिवहन (Active transport into root hairs) - मृदा विलयन में खनिजों (minerals) की सान्द्रता पादप कोशिकाओं में उपस्थित सान्द्रता की अपेक्षा बहुत कम होती है, जैसे मृदा विलयन में पोटैशियम आयन (K+) की सान्द्रता पादप कोशाओं की अपेक्षा 1/10 होती है। अतः इन आयनों का जड़ों में सामान्य विसरण नहीं हो सकता है, इस कारण से अधिकांश खनिज तत्व सान्द्र प्रवणता के विरुद्ध सक्रिय परिवहन (active transport) द्वारा मूलरोम में आते हैं। इस क्रिया में मूलरोम की प्लाज्मा झिल्ली ATP से ऊर्जा प्राप्त करती है।
(ii) कोशाद्रव्य से होकर परिरम्भ कोशाओं तक विसरण (Diffusion through cytoplasm to pericycle cells) — जीवित कोशिकाओं के कोशाद्रव्य परस्पर जीवद्रव्यी तन्तुओं (plasmodesmata) द्वारा सम्बन्धित रहते हैं। विभिन्न खनिज तत्व इन्हीं तन्तुओं से होकर विसरण प्रक्रिया द्वारा मूलीय त्वचा की कोशिकाओं से क्रमशः वल्कुट (cortex) व endodermis से होते हुए परिरम्भ (pericycle) कोशाओं में जाते हैं।
(iii) संवहन बण्डल के अन्तराकोशीय स्थानों में सक्रिय परिवहन (Active transport into the intercellular spaces of the vascular bundle) – जड़ के संवहन बण्डल के मध्य में जाइलम होता है। इसी से होकर अन्ततः खनिजों का परिवहन होता है। जाइलम वाहिकाएँ तथा वाहिनिकाएँ मृत होती हैं और उनकी कोशा-भित्ति छिद्रिल होती है। परिरम्भ (pericycle) कोशाओं के कोशाद्रव्य से खनिज, सक्रिय परिवहन (active transport) द्वारा जाइलम के बीच अन्तराकोशीय स्थानों में आ जाते हैं।
(iv) जाइलम में विसरण (Diffusion into the xylem) - जाइलम के बीच intracellular space में आये खनिजों के कारण इनकी सान्द्रता बढ़ जाती है, यह एक प्रवणता (gradient) उत्पन्न करती है जो अन्तराकोशीय स्थानों से खनिज तत्वों के विसरण को जाइलम वाहिनिकाओं (xylem tracheids) एवं वाहिकाओं (vessels) में प्रेरित करती है।
(B) खनिजों का निष्क्रिय अवशोषण (Passive Absorption of Minerals) — इस प्रकार के अवशोषण में खनिज साधारण भौतिक प्रक्रिया द्वारा अवशोषित होते हैं जिसमें ऊर्जा का प्रत्यक्ष (direct) उपयोग नहीं होता है। इस प्रक्रिया में खनिजों की गति अधिक सान्द्रता वाले भाग से कम सान्द्रता वाले भाग की ओर होती है।
स्वतन्त्र ऊर्जा पर आधारित नवीन विचारधारा के अनुसार खनिज अथवा तत्व अधिक रासायनिक विभव (chemical potential) क्षेत्र से कम रासायनिक विभव क्षेत्र की ओर जाते हैं। रासायनिक विभव किसी पदार्थ के मोल अंश (mole fraction) द्वारा किसी तन्त्र की स्वतन्त्र ऊर्जा में योगदान है जो वास्तव में उस पदार्थ की सान्द्रता पर ही निर्भर करता है। विद्युत् अनपघट्यों (non electrolytes) में इसे रासायनिक विभव तथा विद्युत् अपघट्यों (electrolytes) में आयनों पर आवेश निवेशित होने के कारण इसे विद्युत् रासायनिक विभव (electrochemical potential) कहा जाता है।
विभिन्न पदार्थों का निष्क्रिय अवशोषण प्रायः आयन प्रणाल (ion channels) के माध्यम से होता है। ये आयन प्रणाल वास्तव में कोशिका कला में उपस्थित विशिष्ट प्रोटीन्स (trans-membrane proteins) होते हैं जो विशिष्ट छिद्रों की भाँति कार्य करते हैं।
परपोषी पौधे निम्न प्रकार हैं-
परपोषी पौधों के बारे में और जानने के लिए नीचे दिए गए पोस्ट को पढ़ें।
2. परपोषित पौधे (Heterotrophic plants)
इन पौधों में पर्णहरिम (chlorophyll) की अनुपस्थिति के कारण अथवा कुछ अन्य कारणों से अपना भोजन स्वयं निर्माण करने की सामर्थ्य नहीं होती तथा इनको बने बनाये कार्बनिक भोज्य पदार्थों पर निर्भर रहना पड़ता है, जैसे जीवाणु, कवक तथा कुछ पुष्पी-पादप (flowering plants)। कुछ विशेष पौधों में पर्णहरिम भी होता है। ऐसे पौधे पोषक अथवा आतिथेय (host) पर केवल जल तथा खनिजों के लिये आश्रित होते हैं।परपोषी पौधे निम्न प्रकार हैं-
- परजीवी पौधे (Parasitic plants)
- मृतोपजीवी पौधे (Saprophytic plants)
- सहजीवी पौधे (Symbionts)
- कीटभक्षी पौधे (Insectivorous plants)
परपोषी पौधों के बारे में और जानने के लिए नीचे दिए गए पोस्ट को पढ़ें।
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