ऊष्मागतिकी के नियम (Laws of Thermodynamics)|hindi


ऊष्मागतिकी के नियम (Laws of  Thermodynamics)
ऊष्मागतिकी के नियम (Laws of  Thermodynamics)|hindi

ऊर्जा के विभिन्न स्वरूपों में परिवर्तन की क्रिया (energy transformations) के क्रमबद्ध अध्ययन को ऊष्मागतिकी (thermodynamics) कहते हैं। ऊष्मागतिकी के प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं—


(1) ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम (First Law of Thermodynamics)

ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम को ऊर्जा संरक्षण का नियम (law of conservation of energy) भी कहते हैं। इस नियम के अनुसार,

ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है, यद्यपि ऊर्जा के एक रूप (form) को दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है"।

यह नियम बताता है कि "किसी निकाय (system) तथा इसके परिवेश (surrounding) की सम्पूर्ण ऊर्जा (total energy) स्थिर होती है”, अर्थात् जब एक प्रकार की ऊर्जा की कोई मात्रा लुप्त होती है तो उसके तुल्य दूसरे प्रकार की ऊर्जा अवश्य प्रकट होती है।

The first law of thermodynamics states that "Energy can neither be created nor destroyed. Although it may be converted from one form to another, the total energy in the universe must remain constant. "


पदार्थों में ऊर्जा अनेक रूपों में संचित रहती है और एक स्वरूप से दूसरे स्वरूप में बदलती रहती है। उदाहरण के लिए एक स्वचालित मोटर इंजन में ऊर्जा गैसोलीन के रासायनिक बन्धों (chemical bonds) में संरक्षित रहती है। इन बन्धों के टूटने से ऊर्जा, ऊष्मा (heat) के रूप में मुक्त होती है। इस ऊष्मा की कुछ मात्रा यान्त्रिक ऊर्जा में बदलती है जिसके फलस्वरूप गति होती है। इस यान्त्रिक ऊर्जा (mechanical energy) का कुछ भाग इंजन के भागों की रगड़ से पुनः ऊष्मा में बदल जाता है। जुगनू (firefly) रात्रि के समय रासायनिक ऊर्जा को प्रकाश में बदलता है। पक्षी तथा स्तनधारी रासायनिक ऊर्जा को तापीय ऊर्जा में बदलकर अपने शरीर के तापक्रम को स्थिर रखते हैं।

पत्ती (leaf) के उदाहरण को लेकर ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम को आसानी से समझा जा सकता है। पौधों में ऊर्जा रूपान्तरण का प्रमुख उदाहरण पौधों की हरी पत्तियों द्वारा होने वाली प्रकाश-संश्लेषण (photosynthesis) की क्रिया है। इस क्रिया में प्रकाशीय ऊर्जा (radiant energy) को रासायनिक ऊर्जा (chemical energy) में बदला जाता है। यह ऊर्जा फिर कोशीय श्वसन (cellular respiration) में मुक्त होती है और विभिन्न जैविक क्रियाओं में तथा जटिल यौगिकों के निर्माण में प्रयुक्त होती है। अनेक जन्तु जैसे जुगनू तथा कुछ मछलियाँ इस रासायनिक ऊर्जा को पुनः प्रकाश में बदल देती हैं।

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एक कोशिका भी ऊर्जा के विभिन्न रूपों (forms) में परिवर्तन के लिये पूरी तरह सक्षम होती है। कोशिका में उपस्थित पॉलिसैकेराइड्स तथा वसाओं में संचित ऊर्जा न केवल रासायनिक परिवर्तनों में काम आती है बल्कि अनेक रूपों में भी बदलती है जैसे कोशिकांगों (cell organelles) की गति के लिए यह यान्त्रिक ऊर्जा (mechanical energy) में बदलती है। 

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पेशी कोशा के संकुचन के समय तापीय ऊर्जा (heat energy) में बदलती है तथा किसी आयन (ion) के झिल्ली से होकर गुजरने में यह विद्युत् ऊर्जा (electrical energy) में बदलती है।

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(2) ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम (Second Law of Thermodynamics)
ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम अनुसार,

"ऊर्जा में समान रूप से वितरित (distribute) होने की प्रवृत्ति होती है"।

यह नियम बताता है कि ऊर्जा, अधिक ऊर्जा वाले क्षेत्र से कम ऊर्जा वाले क्षेत्र की ओर स्थानान्तरित होती रहती है। इस स्थानान्तरण में ऊर्जा की कुछ मात्रा ऊष्मा के रूप में बदलकर परिवेश (surrounding) में विसरित (dissipate) हो जाती है। इस प्रकार कोई भी निकाय या तन्त्र (system) व्यवस्थित (ordered) दशा से अव्यवस्थित (disordered) दशा में प्रवत्त (directed) होता है। इस अव्यवस्थित (disordered) दशा को एन्ट्रॉपी (entropy) कहते हैं।

इस नियम के अनुसार, सभी ऊर्जा परिवर्तन तथा ऊर्जा स्थानान्तरण क्रियाओं द्वारा सृष्टि (universe) की सम्पूर्ण एन्ट्रॉपी बढ़ती जाती है।

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किसी भी जीवित तन्त्र में बढ़ती हुई एन्ट्रॉपी को बाहर से स्वतन्त्र ऊर्जा (free energy) प्राप्त करके कम किया जा सकता है। ऐसे तन्त्र को जिसमें प्रत्यक्ष (direct) या अप्रत्यक्ष (indirect) रूप से स्वतन्त्र ऊर्जा आती रहती है, खुला तन्त्र (open system) कहते हैं। सजीवों को स्वतन्त्र ऊर्जा श्वसन (respiration) क्रिया द्वारा खाद्य-पदार्थों के ऑक्सीकरण (oxidation) से मिलती है। हरे पौधे इसे सूर्य की किरणों से प्रकाश-संश्लेषण (photosynthesis) क्रिया द्वारा सीधे ही खाद्य-पदार्थों में संचित करते हैं। अतः स्वतन्त्र ऊर्जा वातावरण से ही आती है। यदि जीवित तन्त्र (living system) में परिवेश (surrounding) से मुक्त ऊर्जा का प्रवेश न हो तो निरन्तर एन्ट्रॉपी अर्थात् अव्यवस्थिता (disorder) बढ़ते रहने के कारण जीव की मृत्यु हो जायेगी। ऐसा तन्त्र जिसमें परिवेश से ऊर्जा का आदान-प्रदान न हो तो यह बन्द तन्त्र (closed system) अर्थात् निर्जीव (dead) कहलाता है।

एक खुला तन्त्र स्थायी अवस्था (steady state) में रहता है, क्योंकि खुले तन्त्र से ऊर्जा का जाना (loss), इसमें ऊर्जा के आने से सन्तुलित होता रहता है।

हरी पत्ती के उदाहरण से ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम को आसानी से समझ सकते हैं।

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) व जल (H2O) से हरी पत्तियों में प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा खाद्य सामग्री, जैसे ग्लूकोस आदि बनता है तथा इनमें सूर्य की विकिरण ऊर्जा (radiant energy) रूप बदलकर रासायनिक ऊर्जा (chemical energy) के रूप में संचित हो जाती है। जीवधारियों के द्वारा ग्लूकोस दूसरे पदार्थों, जैसे वसा (fat), आदि में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार बना large compounds का समूह एन्ट्रॉपी (entropy), अर्थात् अव्यवस्थिता (disorder) को कम करता है। खाद्य पदार्थों के ऑक्सीकरण, अर्थात् श्वसन ( respiration) से एन्ट्रॉपी, अर्थात् अव्यवस्थिता का स्तर बढ़ जाता है। इस प्रकार पूरे निकाय (system) में कोशिका तथा परिवेश (surrounding) का एन्ट्रॉपी परिवर्तन सकारात्मक (positive) होता है। यह ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम (second law of thermody namics) के अनुसार है।

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सजीवों (living beings) में ऊर्जा रूपान्तरण (energy transformation) का अध्ययन बायोएनेर्जेटिक्स (bioenergetics) कहलाता है।


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