वैद्युत-संयोजक यौगिक (Electrovalent Compounds) : उदाहरण, लक्षण
उन यौगिकों को जिनमें वैद्युत-संयोजक बन्ध होते हैं, वैद्युत-संयोजक यौगिक (electrovalent compounds) या आयनिक यौगिक (ionic compounds) या ध्रुवीय यौगिक (polar compounds) कहते हैं। उदाहरणार्थ—NaCl, CaCl2 तथा MgO वैद्युत-संयोजक यौगिक हैं।
वैद्युत संयोजकता
वैद्युत-संयोजक बन्ध बनाने में किसी तत्व के एक परमाणु के द्वारा दिये गये या लिए गए इलेक्ट्रॉनों की संख्या को उस तत्व की वैद्युत-संयोजकता (electrovalency) कहते हैं। उदाहरणार्थ- Na, Ca, Cl व O की वैद्युत-संयोजकताएँ क्रमश: 1, 2, 1 व 2 हैं।वैद्युत-संयोजक यौगिकों के लक्षण (Characteristics of Electrovalent Compounds)
1. वैद्युत-संयोजक यौगिकों में उनके आयन एक नियमित रूप से व्यवस्थित होते हैं। सोडियम क्लोराइड के क्रिस्टल की संरचना नीचे चित्र में प्रदर्शित की गई है। स्पष्ट है कि सोडियम क्लोराइड के क्रिस्टल में प्रत्येक सोडियम परमाणु छ: क्लोरीन परमाणुओं से घिरा हुआ (surrounded) है। इसी प्रकार प्रत्येक क्लोरीन परमाणु छ: सोडियम परमाणुओं से घिरा हुआ है।2. वैद्युत-संयोजक यौगिकों के धनायन तथा ॠणायन, स्थिर-वैद्युत आकर्षण बलों (electrostatic forces of attraction) के कारण एक-दूसरे बंधे रहते हैं। कोई एक आयन अपने चारों ओर उपस्थित विपरीत आवेश वाले सभी आयनों की ओर आकर्षित होता है। अतः इन आयनों को अलग-अलग करने के लिए अधिक ऊर्जा देने की आवश्यकता पड़ेगी। अतः वैद्युत-संयोजक यौगिकों के गलनांक तथा क्वथनांक अधिक होते हैं।
3. वैद्युत-संयोजक यौगिक प्रायः ध्रुवीय विलायकों (polar solvents) में विलेय होते हैं तथा विलेय होने पर अपने आयनों में वियोजित हो जाते हैं। अतः वैद्युत-संयोजक यौगिक जल में विलेय होते हैं तथा जल में विलेय होने पर अपने आयनों में वियोजित (dissociate) हो जाते हैं।
उदाहरण के लिए
NaCl ⇋ Na+ + CI-
- जल का डाइ-इलेक्ट्रिक स्थिरांक (di-electric constant) अधिक होता है। इस कारण वैद्युत-संयोजक यौगिकों को जल में विलेय करने पर उनके आयनों के बीच स्थिर वैद्युत आकर्षण बल weak हो जाता है।
- जल एक ध्रुवीय सह-संयोजक यौगिक है। जल के अणु में हाइड्रोजन परमाणुओं पर आंशिक घनावेश तथा ऑक्सीजन परमाणुओं पर आंशिक ऋणावेश होता है। जल के सम्पर्क में आने पर वैद्युत-संयोजक यौगिक के धनायन ऑक्सीजन पर उपस्थित ऋणावेश की ओर आकर्षित होते हैं, इसी प्रकार ऋणायन हाइड्रोजन पर उपस्थित धनावेश की ओर आकर्षित होते हैं। इस प्रकार वैद्युत-संयोजक यौगिक के धनायन तथा ऋणायन जल-योजित (hydrated) हो जाते हैं अर्थात् प्रत्येक धनायन व ऋणायन के चारों ओर जल के अणु आकर्षण बल के कारण जुड़ जाते हैं ( नीचे चित्र में देखें)।
इस क्रिया में ऊर्जा उत्पन्न होती है तथा स्थायित्व प्राप्त होता है। इस क्रिया में उत्पन्न ऊर्जा को हाइड्रेशन ऊर्जा (hydration energy) कहते हैं। यह ऊर्जा वैद्युत-संयोजक यौगिक के क्रिस्टल के जालकों (lattices) को तोड़ने में पर्याप्त होती है। धनायनों व ऋणायनों के जल-योजन के फलस्वरूप उनके मध्य कार्य कर रहे आकर्षण बल क्षीण हो जाते हैं तथा विलयन में वे जल-योजित आयनों के रुप में स्वतन्त्र हो जाते हैं (नीचे चित्र में देखें)।
4. वैद्युत-संयोजक यौगिक प्रायः अध्रुवीय विलायकों (non-polar solvents) में अविलेय होते हैं। अधिकांश कार्बनिक विलायक, अध्रुवीय विलायक हैं। अतः वैद्युत-संयोजक यौगिक प्राय: कार्बनिक विलायकों में अविलेय होते हैं।
5. आयनित हो जाने के कारण गलित या विलयन की अवस्था में वैद्युत-संयोजक यौगिक विद्युत के सुचालक क (good conductors) होते हैं।
6. सोडियम क्लोराइड की क्रिस्टल संरचना (चित्र 1) से स्पष्ट है कि प्रत्येक आयन छः विपरीत आवेशित आयनों की ओर समान रूप से आकर्षित है। इससे यह स्पष्ट होता है कि वैद्युत-संयोजक यौगिक आयनों के बने होते हैं तथा उनमें अलग-अलग अणु नहीं होते हैं। रासायनिक समीकरणों में वैद्युत-संयोजक यौगिकों को आयनों के रुप में प्रदर्शित करना सुविधाजनक नहीं है। अतः रासायनिक समीकरणों में वैद्युत-संयोजक यौगिकों को उनके अणुओं के रूप में ही प्रदर्शित करते हैं। किसी वैद्युत-संयोजक यौगिक के एक अणु में उसके धनायनों व ऋणायनों की संख्या इस प्रकार होती है कि धनायनों व ऋणायनों के आवेशों की संख्या समान हो जाये। इसी आधार पर इनके अणु भार की गणना की जाती है।
7. चूँकि वैद्युत-संयोजक बन्ध बनाने में परमाणुओं के मध्य इलेक्ट्रॉनों का स्थानान्तरण हो जाता है तथा विपरीत आवेशित आयन परस्पर स्थिर वैद्युत आकर्षण द्वारा जुड़े रहते हैं, अतः वैद्युत-संयोजक बन्ध अदिशात्मक (non-directional) होता है। कोई एक आयन किसी विपरीत आवेशित आयन से किसी भी दिशा में आकर्षित हो सकता है।
8. वैद्युत-संयोजक यौगिकों की रासायनिक अभिक्रियाओं में इनके आयन भाग लेते हैं। इस प्रकार की अभिक्रियाओं को आयनिक अभिक्रियायें (ionic reactions) कहते हैं। आयनिक अभिक्रियाओं की गति बहुत अधिक होती है। उदाहरण के लिए – सोडियम क्लोराइड (NaCl) तथा सिल्वर नाइट्रेट (AgNO3) के जलीय विलयनों को मिलाने पर सिल्वर क्लोराइड (AgCI) का सफेद अवक्षेप तुरन्त प्राप्त हो जाता है।
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