मच्छर (Mosquito) : वर्गीकरण, परिचय, प्राकृतिक वास, बाह्य लक्षण|hindi


मच्छर (Mosquito)

मच्छर (Mosquito) : वर्गीकरण, परिचय, प्राकृतिक वास, बाह्य लक्षण|hindi

वर्गीकरण (Classification)

संघ (Phylum)            -      आर्थ्रोपोडा (Arthropoda)
वर्ग (Class)                -       इनसेक्टा (Insecta)
उपवर्ग (Subclass)      -      पेटीगोटा (Pterygota)
विभाजन (Division)   -       एंडोप्टेरीगोटा  (Endopterygota)
गण (Order)               -       डिप्टेरा (Diptera)
श्रेणी (Genus)             -       
मच्छर (Mosquito)



मच्छरों में शरीर काफी पतला, ऐन्टिनी तथा पैर काफी लम्बे और पतले तथा मुख के भाग केवल sucking या piercing-sucking के लिए उपयोग किए होते हैं। मच्छरों की लगभग 1500 जातियाँ ज्ञात हैं। इन्हें एक ही कुटुम्ब–क्यूलिसाइडी (culicidae) के अन्तर्गत तीन श्रेणियों— ऐनोफेलीज, क्यूलेक्स तथा ऐडीज (genera Anopheles, Culex and Aedes) — में बाँटा जाता है। आज हम ऐनोफेलीज तथा क्यूलेक्स मच्छरों के परिचय, प्राकृतिक वास, तथा बाह्य लक्षणों का वर्णन करेंगे।


परिचय, प्राकृतिक वास एवं स्वभाव (Introduction, Habitat and Habits)

मक्खियों की तरह ही , मच्छर भी हमारे शत्रु कीट ही होते हैं। कई जातियों के मच्छरों की मादाएँ अपने पोषण के लिए हमारा रक्त चूसती हैं और इस प्रक्रिया के माध्यम से मानवों में अनेक घातक रोग फैलाती हैं, जैसे फीलपाँव (Elephantiasis), दण्डकज्वर (Dengue), पीतज्वर (Yellow fever), मलेरिया (Malaria) आदि।

मच्छर संसारभर में नम, दलदलीय भूभागों में पाए जाते हैं। उष्ण एवं उपोष्ण कटिबन्धों (tropics and subtropics) में ये अधिक होते हैं। मक्खी के विपरीत, ये रात्रिचर (nocturnal) होते हैं। दिन में ये छप्परों, झाड़ियों, अलमारियों, बक्सों, फर्नीचर आदि में अँधेरे में छिपे रहते हैं। रात में इधर-उधर उड़कर यह फल-फूलों का रस या मानव एवं अन्य जन्तु पोषदों (hosts) का रुधिर चूसते हैं। यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि केवल मादा मच्छर ही गरम रुधिर वाले कशेरुकियों (warm blooded vertebrates) जैसे पक्षियों एवं स्तनियों का रुधिर चूसती है और इस प्रकार बाह्य परजीवी ( ectoparasitic) होती है। नर मच्छर रुधिर नहीं चूसते है। ये अपना पोषण फल-फूलों के रस से प्राप्त करते हैं। कभी-कभी मादाएँ भी फल-फूलों का रस चूस सकती हैं।

जाड़ों एवं गर्मी में मच्छर कम हो जाते हैं, लेकिन बरसात में सक्रिय प्रजनन के कारण, इनकी संख्या बहुत बढ़ जाती है। मादा मच्छर बरसाती गड्ढों, पोखरों, ताल-तलैयों, नालों, होजों, तालाबों, कुओं आदि में ही नहीं, बल्कि कहीं भी कुछ समय के लिए खुले जल में अण्डे दे देती है। जल में ही मच्छर का भूणीय परिवर्धन एवं जीवन-वृत्त पूरा होता है, परन्तु कुछ इसके फलस्वरूप हवा में उड़ने वाला पंखयुक्त वयस्क बनता है। उड़ने की क्षमता मच्छर में काफी होती है। यह दो-तीन घण्टे निरन्तर और एक-एक रात में 20 से 30 किलोमीटर तक उड़ सकता है। क्यूलेक्स (Culex) मच्छर में उड़ने की क्षमता अधिक होती है। किसी वस्तु पर बैठे क्यूलेक्स का शरीर वस्तु की सतह के समानान्तर, परन्तु proboscis पूरे शरीर से 45° के कोण पर नीचे झुकी रहती है। इसके विपरीत, ऐनोफेलीज (Anopheles) मच्छर में बैठे रहने की दशा में शरीर वस्तु की सतह से 45° के कोण पर उठा, परन्तु proboscis शरीर की सीध में रहती है।

मच्छर (Mosquito) : वर्गीकरण, परिचय, प्राकृतिक वास, बाह्य लक्षण|hindi


बाह्य लक्षण (EXTERNAL FEATURES )


आकृति, माप एवं रंग (Shape, Size and Colour)


मच्छर का शरीर मक्खी के शरीर से कुछ छोटा (लगभग 3 से 5 मिमी लम्बा), सँकरा एवं कोमल तथा शल्कों (scales) द्वारा ढका होता है। इसका रंग धूसर काला होता है।

क्षेत्रीय करण एवं विखण्डन (Regionation and Segmentation)

मच्छर में भी शरीर सिर, वक्ष एवं उदर भागों में विभेदित होता है। एक छोटी-सी लचीली ग्रीवा सिर को वक्ष से जोड़ती है।

1. सिर (Head) : मक्खी की भाँति, मच्छर का सिर भी hypognathous condition में नीचे की ओर झुका होता है। यह कुछ मोटा, गोल-सा (spherical) और काफी गतिशील होता है। इस पर भी दो बड़े, kidney-shaped संयुक्त नेत्र होते हैं, परन्तु सरल नेत्र या नेत्रक (ocelli) नहीं होते हैं। इसके मुख के भाग के ऊपर से दो लम्बी antennae निकली रहती हैं। प्रत्येक antennae में 15 podomeres होते हैं। समीपस्थ (proximal) आधार पोडोमीयर को स्केप (scape) तथा दूसरे को पेडिसेल (pedicel) कहते हैं। पेडिसेल बड़ा तथा नालवत् होता है। इसमें भीतर एक संवेदांग होता है जिसे Johanston's organ कहते हैं। Antennae के जरा-सा भी हिलने पर यह अंग संवेदित होता है। 

ध्वनि तरंगों (sound vibrations) तक से संवेदित होकर यह auditory sense ग्रहण करने में भी सहायता करता है। antennae के शेष 13 खण्डीय भाग को flagellum कहते हैं। मच्छर की antennae पर arista नहीं होता है; flagellum ही स्वयं ब्रुश जैसी होती हैं, क्योंकि इन पर खण्डों के सन्धि-स्थानों से निकले महीन रोम-जैसे bristles होते हैं। नर में ये शूक संख्या में अधिक और बड़े-बड़े (plumose antennae), परन्तु मादा में कम और छोटे-छोटे (pilose antennae) होते हैं। अतः ये नर व मादा की पहचान में सहायता करते हैं। सिर पर proboscis के अतिरिक्त अन्य कीटों की तरह ही मुख उपांग लगे होते हैं।

2. वक्ष भाग (Thorax) : इसमें वही तीन खण्ड होते हैं प्रोथोरेक्स, मीसोथोरैक्स, तथा मेटाथोरैक्सप्रोथोरैक्स एवं मेटाथोरैक्स बहुत छोटे होते हैं और बड़े-से मीसोथोरैक्स द्वारा ढके होते हैं। मक्खी की तरह मच्छर में भी मीसोथोरैक्स का टरगम-मीसोनोटम (mesonotum)- अनुप्रस्थ दरारों द्वारा स्कुटम (scutum), स्कुटेलम (scutellum) एवं पोस्टस्कुटेलम (post-scutellum) में बँटा होता है। scutellum पीछे की ओर ऐनोफेलीज में तो सामान्य, अर्धचन्द्राकार-सा (crescentic) होता है, परन्तु क्यूलेक्स में trilobed होता है। तीनों वक्षीय खण्डों से एक-एक जोड़ी संयुक्त पैर, मीसोथोरैक्स से एक जोड़ी पंख तथा मेटाथोरैक्स से एक जोड़ी सन्तुलन अंग (halters) यथावत् लगे होते हैं। प्रोथोरैक्स और मेटाथोरैक्स पर, पैरों के निकट, एक-एक जोड़ी spiracles होते हैं।

3. उदर भाग (Abdomen) : यह लम्बा एवं पतला होता है। इसमें दस खण्ड होते हैं। मक्खी के समान, प्रथम उदरखण्ड कम विकसित और मेटाथोरैक्स से मिला हुआ होता है। दूसरे से 8वें तक सब उदरखण्ड सामान्य होते हैं। इन पर एक-एक जोड़ी (कुल 7 जोड़ी) श्वास-रन्ध्र होते हैं। अन्तिम दो (नवाँ एवं दसवाँ) उदरखण्ड आठवें में कुछ धँसे रहते हैं। मादा में दसवें उदरखण्ड पर एक जोड़ी छोटे anal cerci होते हैं। इनके बीच में एक छोटी-सी postgenital plate होती है। नर में दोनों अन्तिम उदरखण्ड 180° के कोण पर घूमे हुए होते हैं। नवाँ खण्ड मुद्राकार होता है। इस पर एक जोड़ी पंजेदार claspers लगे होते हैं। दसवाँ खण्ड एक मैथुनांग में रूपान्तरित होता है जिसे aedeagus कहते हैं। नर एवं मादा, दोनों में गुदा (anus) आठवें तथा जनन-छिद्र नवें उदरखण्डों के किनारे पर होते हैं। 




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