मनुष्य के लिए मक्खी एक अभिशाप है। जंगली जन्तु, जहरीले साँप आदि सब मिलकर मानव का इतना विनाश नहीं कर पाते जितना कि एक मक्खी करती है। यद्यपि यह स्वयं जहरीली या रोगोत्पादक नहीं होती, किन्तु रोगों को फैलाने में इसका कोई जोड़ नहीं है। यह तीन प्रकार से रोग फैलाती है-
1. संक्रामक रोगों के कीटाणुओं एवं प्रोटोजोआ को फैलाना (Dissemination of Pathogenic Bacteria and Protozoa): एक ओर सड़ी-गली गन्दी वस्तुओं, घावों आदि पर तथा दूसरी ओर हमारी खाद्य सामग्री पर समान रूप से बैठने की अपनी गन्दी आदत के द्वारा मक्खी अनेक ऐसे जीवाणुओं और प्रोटोजोआ को फैलाती है जो मनुष्य में घातक रोग उत्पन्न करते हैं। ऐसे प्रमुख रोग होते हैं आमातिसार या अमीबी पेचिस (Amoebic dysentery), गिलटी रोग (Anthrax), ताऊन या प्लेग (Bubonic plague), हैजा या कॉलरा (Asiatic cholera), दस्त या अतिसार (Diarrhoea), कोथ या गैन्गरीन (Gangrene), सूजाक (Gonorrhoea), कोढ़ (Leprosy), आन्त्रज्वर या टाइफाइड (Typhoid), क्षयरोग या तपेदिक (Tuberculosis) आदि ।
2. मनुष्य के परजीवी कृमियों फैलाना (Dissemination of Parasitic Worms of Man) : मनुष्य के कुछ आन्त्रीय कृमियों, जैसे कि केंचुए अर्थात् ऐस्कैरिस लम्ब्रीक्वॉएडिस (Ascaris lumbricoides), अंकुश-कृमि (Hookworm), फीताकृमि (Tapeworm) आदि के अण्डों का वहन करके मक्खी इन्हें फैलाने का काम करती है।
3. खाद्य वस्तुओं का संक्रमण (Infection of food-stuff) तथा अन्य विधियाँ: बहुधा मक्खियाँ सड़े-गले एवं कटे फलों पर अपने अण्डे दे देती हैं। ऐसे फलों को खाने से मक्खी के अण्डे एवं डिम्भक (larvae) मनुष्य की आहारनाल में पहुँच जाते हैं। इससे पेट में पीड़ा तथा अतिसार (दस्त) हो सकता है। कभी-कभी डिम्भक आँत की mucous membrane को घायल कर देती हैं। इससे रक्त का स्त्राव हो सकता है। घावों पर मक्खी के बैठने से पीड़ा होती है। यदि घाव पर यह अण्डे दे देती है तो पीड़ा बहुत बढ़ जाती है और सूजन हो जाती है। कभी-कभी मक्खियाँ गन्दे बच्चों की नाक, मुख, गुदा, योनि आदि में अण्डे देकर विकार उत्पन्न करती हैं।
रोगोत्पादक जीवों के वहन की विधि
मक्खी की रचना एवं इसका स्वभाव, दोनों ही रोगोत्पादक जीवों के वहन के लिए आदर्श रूप से उपयुक्त होते हैं। इन जीवों का वहन मक्खी दो प्रकार से करती है-
(क) बाह्य स्थानान्तरण (External Transfer) : घने रोमों के कारण मक्खी का पूरा शरीर, विशेषतौर से मुखांग, पाद, पंख आदि सभी रोगाणुओं का वहन करने (conveyance) के लिए उपयुक्त होते हैं। जब मक्खी गन्दी वस्तुओं या रोगियों के मल-मूत्र, थूक, घाव, फोड़े-फुन्सी आदि पर बैठती है तो लाखों रोगाणु रोमों में फँस जाते हैं पादों की चिपचिपी गद्दियों से चिपक जाते हैं। फिर मक्खी हमारी खाद्य वस्तुओं, घावों, मुख, गुदा, योनि, आँख आदि पर बैठकर इन्हें रोगाणुओं से संक्रमित कर देती है।
(ख) अन्तः स्थानान्तरण (Internal Transfer) : मक्खी गन्दी वस्तुएँ (मल-मूत्र, कफ आदि) खाती है। इन वस्तुओं में उपस्थित रोगाणु मक्खी के रोमों में तो फँसते ही हैं, ये इसकी आहारनाल में भी पहुँच जाते हैं। यहाँ कुछ रोगाणु पचते नहीं, बल्कि अधिक सुरक्षित होने के कारण, अधिक समय तक रहते हैं। कहते हैं कि टाइफॉइड के रोगाणु लगभग एक महीने तक मक्खी के अन्नपुट या क्रॉप (crop) में सुरक्षित रहते हैं। जब मक्खी हमारी भोजन-सामग्री पर बैठती है तो इसे अपनी लार या मल के साथ निकले रोगाणुओं द्वारा संक्रमित कर देती है।
घरेलू मक्खी से बचाव के उपाय
मक्खी मनुष्यों में ही नहीं, पालतू पशुओं में भी अनेक रोग फैलाती है। इसका विनाश एवं इससे बचना हमारे लिए आवश्यक होता है। इसके तीन उपाय हो सकते हैं-
- प्रौढ़ मक्खी का विनाश
- मक्खी के प्रसवन को रोकना
- इसे रोग फैलाने से रोकना
1. प्रौढ़ मक्खी का विनाश (Destruction of Adult Fly)
प्रौढ़ मक्खी का विनाश निम्नलिखित विधियों से किया जा सकता है—
- जाली (Fly-Trap) द्वारा मक्खी का शिकार : घरों में दरवाजों और खिड़कियों पर लोहे की महीन जाली लगवा लेने से मक्खी घर में नहीं घुस पाती। इन जालियों में यदा-कदा विद्युत् करेन्ट पास करते रहें तो अनेक मक्खियाँ मारी जा सकती हैं। मक्खियों को पहले जालियों पर बैठने का प्रलोभन दे दें तो यह विधि और अधिक कारगर हो सकती है। इसके लिए जालियों पर केले का गूदा, गुड़, मिठाई आदि लगाना चाहिए।
- मक्खीमार कागज (Fly Paper) से शिकार: चिपचिपा कागज जिस पर मक्खी बैठते ही चिपककर रह जाती है, घरों में दीवारों, खिड़कियों आदि पर लगा दिया जाता है।
- रासायनिक पदार्थों का उपयोग : मक्खी के विनाश के लिए हम घरों में डी०डी०टी० (D.D.T.), लीथेन (lethane), पाइरीभ्रम (pyrethrum), फ्लिट (flit), ट्यूगोन (tugone), गैमैक्सेन (gammexane) आदि के घोलों का तथा पालतू पशुओं के वास स्थानों में क्रियोसोट तैल (creosote oil) का छिड़काव कर सकते हैं। पाइरीश्रम तथा पेस्ट्रिन (pestrin) पाउडर का छिड़काव भी किया जा सकता है। फॉर्मेलीन व मीठे दूध के घोल में भीगी रुई को जगह-जगह रखने, सोडियम आर्सीनेट (sodium arsenate) एवं चीनी के घोल को जगह-जगह फैला देने, नीम की पत्ती का धुआँ करने तथा घरों की सफाई रखने और कूड़े-करकट को बन्द रखने से मक्खियाँ कम हो जाती हैं।
2. मक्खी के प्रसवन को रोकना (Prevention of Breeding)
मक्खी में तीव्र प्रसवन दर होने के कारण इसका अधिक प्रभावी उन्मूलन हम इसकी प्रौढ़ अवस्था को नष्ट करके नहीं, बल्कि प्रसवन को रोककर ही कर सकते हैं। अतः उड़ने लायक बनने से पहले ही मक्खी का विनाश निम्नलिखित विधियों द्वारा करना चाहिए-
(क) रासायनिक विधियाँ -
- गोबर तथा कूड़े-करकट पर चूना, फॉर्मेलीन, तारकोल, तूतिया (copper sulphate) आदि छिड़ककर मक्खी के अण्डों एवं लार्वी का नियमित विनाश किया जा सकता है, लेकिन फिर गोबर आदि खाद के योग्य नहीं रहता।
- जल में बोरैक्स (borax) तथा हेल्बोर (helbor—sodium fluorosilicate) के घोल को खाद, गोबर आदि पर छिड़कने से भी मक्खी के अण्डे एवं लार्वी नष्ट जाते हैं। इससे खाद भी विशेष खराब नहीं होती।
(ख) भौतिक विधियाँ -
- घरों, सड़कों, गलियों, नालियों आदि को साफ रखना।
- घरों, होटलों आदि में कूड़े- -करकट को ढककर रखना।
- गाँव एवं शहर के कूड़े को आबादी से दूर गाड़ना।
- खेतों, बगीचों आदि में लीद एवं गोबर को जमीन पर फैलाकर सुखा देना।
- घरों आदि में वैज्ञानिक सण्डासों (latrines) का उपयोग।
3. मक्खी को रोग फैलाने से रोकना
- खाने-पीने की वस्तुओं को सदैव ढककर रखना चाहिए।
- रोगियों के मल, वमन, कफ आदि को कभी खुला नहीं रखना चाहिए।
- रोगियों का प्रभावशाली उपचार होना चाहिए।
- रोगों को फैलने से रोकने के लिए बस्तियों में नियमित टीके लगाने तथा दवाइयाँ देने के कार्यक्रम चलते रहने चाहिएँ।
उपर्युक्त उपायों को अपनाकर हम मक्खियों को बढ़ने से रोक सकते हैं तथा उनके द्वारा हो रही बीमारियों को भी रोक सकते हैं।
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