घरेलू मक्खी का जीवन- चक्र (Life Cycle of Housefly)|hindi


घरेलू मक्खी का जीवन- चक्र (Life Cycle of Housefly)
मक्खी का जीवन- चक्र (Life Cycle of Housefly)|hindi

नर एवं मादा मक्खियाँ अलग-अलग होती हैं। मादा मक्खियां कुछ बड़ी होती हैं। मक्खी के जीवन चक्र में कई चरण होते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

मैथुन (Copulation) : मक्खियों में मैथुन गर्मी एवं बरसात में मार्च-अप्रैल से अक्टूबर तक होता है, परन्तु अगस्त-सितम्बर में सबसे अधिक होता है। यह किसी वस्तु पर विश्राम करते समय चन्द मिनटों के लिए होता है। नर मक्खी मादा की पीठ पर बैठकर अपने पादों और आलिंगकों द्वारा इसे जकड़ लेती है। अब नर मक्खी अपने ऐडीगस को मादा के genital atrium में डालकर शुक्राणु (sperms) छोड़ देती है।

अण्डनिक्षेपण (Oviposition) : मैथुन के 4-5 दिन बाद मादा मक्खी निषेचित अण्डों (fertilized eggs) का निक्षेपण (deposit) करने लगती है। यह अण्डों के छोटे-छोटे समूह सड़ी-गली, अर्धठोस वस्तुओं (ताजा गोबर, घोड़े की लीद, मानव मल, खाद, सड़े-गले फलों एवं सब्जियों आदि) में, लगभग 12 मिमी गहराई में जमा कर देती हैं। एक मादा मक्खी एक समय में 100-160 अण्डे देती है। लगभग एक महीने के अपने जीवनकाल में यह 4-6 बार में औसतन 500-800 अण्डे दे देती है।

अण्डे (Eggs) और इनकी Hatching : मक्खी के अण्डे सफेद, चमकीले, बेलनाकार, लगभग 1 मिमी लम्बे तथा एक छोर पर कुछ मोटे होते हैं। इनके पृष्ठतल पर दो लम्बे एवं टेढ़े, धारीनुमा उभार होते हैं। गली-सड़ी नम वस्तुओं में भ्रूण की आवश्यक सुरक्षा तथा विकास हेतु उपयुक्त अँधेरा, नमी एवं ताप आदि मिल जाते हैं। लगभग 8 से 24 घण्टों में ही अण्डों की hatching हो जाती है—प्रत्येक अण्डे के पृष्ठतल पर, दोनों उभारों के बीच में, अण्डखोल में लम्बी split बन जाती है और इसमें से भ्रूण एक पादविहीन (apodous) larva के रूप में बाहर निकल आता है।

डिम्भक (Larva) : अण्डे से निकला लार्वा लगभग दो मिमी लम्बा, सफेद, कोमल एवं बेलनाकार, पादविहीन कीड़ा होता है। इसे सूँडी या मैगट (grub or maggot) कहते हैं। इसका शरीर आगे पतला और पीछे मोटा होता है। इस पर महीन cuticle का बाह्य कंकाल होता है तथा इसमें 13 खण्ड होते हैं। पहला, शीर्षखण्ड (cephalic or head segment or pseudocephalon) अर्धविकसित-सा होता है। शेष शरीर या धड़ (trunk) में तीन Thorax एवं नौ abdomen होते हैं।
शीर्षखण्ड के छोर पर अधरतलीय मुखद्वार और इसे घेरे हुए तथा परस्पर जुड़े दो oral lobes होते हैं। प्रत्येक पिण्ड के ऊपरी भाग पर, प्रकाश के ज्ञान के लिए, एक छोटा-सा शंक्वाकार संवेदी उभार होता है। इसे optic tubercle or papilla कहते हैं। पिण्ड के अधर भाग पर उपस्थित अनेक महीन food channels or pseudotracheae तरल भोजन को एकत्रित करके मुख में पहुँचाती हैं। मुखद्वार के पास काइटिन के दो हुक निकले रहते हैं। ये ठोस भोजन कणों को तोड़ने में और चलने में सहायता करते हैं। प्रत्येक हुक एक mandibular sclerite का छोर भाग होता है।

नवें उदर खण्ड के पृष्ठतल पर मध्य में एक जोड़ी 'D' की आकृति के posterior spiracles होते हैं। प्रत्येक रन्ध्र में तीन लम्बे एवं कुण्डलित छिद्र होते हैं जो भीतर tracheae में खुलते हैं। इसी खण्ड के अधरतल पर दो स्पष्ट anal lobes के बीच anus होती है। दूसरे से अन्तिम उदर खण्डों में प्रत्येक के antero-ventral किनारे पर एक जोड़ी अर्धचन्द्राकार-सी spiniferous pads होती हैं। ये चलने वाले अंगों का काम करती हैं। इन्हीं के द्वारा लार्वा आगे-पीछे रेंगता है।

Larva गोबर, लीद, विष्ठा आदि में, प्रकाश से दूर, गहराई में रहता है और तरल पदार्थ ग्रहण करके सक्रिय पोषण करता है। अतः इसमें तीव्र वृद्धि होती है। इसीलिए, इसे अपनी दृढ़ उपचर्म का दो बार moulting or ecdysis करना पड़ता है। moulting के बीच के समय को stadium तथा डिम्भक को instar कहते हैं। इस प्रकार, अण्डे से निकला larva first instar larva होता है। यह दो-तीन दिन में प्रथम ecdysis करके second instar larva बन जाता है। यह लार्वा भी एक-दो दिन में ही ecdysis करके third instar larva बन जाता है जो 8 से 12 मिमी लम्बा एवं हल्के पीले रंग का होता है।

प्यूपा (Pupa): तृतीय इंस्टार लार्वा का अगले तीन-चार दिन में ही एक दूसरी शिशु प्रावस्था में कायान्तरण (metamorphosis) हो जाता है जिसे प्यूपा कहते हैं। पहले, larva का शरीर सिकुड़कर छोटा (लगभग छः मिमी लम्बा) हो जाता है और अगले तीन खण्ड शरीर में अंदर की ओर धँस जाते हैं। अतः शरीर बेलनाकार और सिरों पर गोल-सा हो जाता है। अब इसकी देहभित्ति कड़ी होकर शरीर के चारों ओर गहरा भूरा एवं दृढ़ प्यूपल खोल या प्यूपावरण (pupal case or puparium) बना लेती है जो water-proof तथा airtight होता है। इसमें गुदा और मुखद्वार नहीं होते हैं। अतः यह भोजन-ग्रहण नहीं करता है। हाँ, श्वसन के लिए इसमें अग्र एवं पश्च छोरों पर प्यूपावरण पर खुलने वाले एक एक जोड़ी श्वास रन्ध्र होते हैं।
मक्खी का जीवन- चक्र (Life Cycle of Housefly)|hindi


प्यूपा में ऊतकलयन तथा ऊतक-उत्पत्ति (Histolysis and Histogenesis) : अब निर्जीव से दिखने वाले अचल प्यूपा में आश्चर्यजनक परिवर्तन होते हैं। इसमें केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र के अतिरिक्त, अन्य सभी ऊतकों को रुधिर की phagocytic blood corpuscles भंग करके एक पीले पदार्थ में बदल देती हैं। इस पदार्थ को elemental cream तथा इसके बनने की प्रक्रिया को ऊतकलयन कहते हैं। शिशु-शरीर के उन भागों में जहाँ भावी वयस्क के अंग बनने होते हैं, कुछ कोशिका-समूह ऊतकलयन में सम्मिलित नहीं किए जाते हैं। इन्हें imaginal dises or buds कहते हैं। ये elemental cream से पोषण करके तीव्र वृद्धि एवं विभाजनों द्वारा उपयुक्त वयस्क अंगों का निर्माण करते हैं। अंगों की इसी पुनर्निर्माण प्रक्रिया (reformation process) को ऊतक-उत्पत्ति कहते हैं। सामान्यतः ये प्रक्रियाएँ 4-5 दिन में पूरी हो जाती हैं, परन्तु प्रतिकूल दशाओं में, विशेषतौर से जाड़े में, इनमें महीनों लग जाते हैं। इनके फलस्वरूप शिशु-शरीर पूरा बदलकर वयस्क बन जाता है। इसी को कायान्तरण कहते हैं।

कायान्तरण या रूपान्तरण (Metamorphosis): larva के वयस्क में विकसित होने तक सारे परिवर्तनों की श्रृंखला को कायान्तरण कहते हैं। कॉकरोच के विपरीत, मक्खी में शिशु प्रावस्थाएँ वयस्क से बिल्कुल भिन्न होती हैं। अतः कायान्तरण में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। ऐसे कायान्तरण को complete or holometabolic कहते हैं।

पूर्णकीट या इमैगो (Imago): प्यूपावरण में कायान्तरण के फलस्वरूप बनी वयस्क मक्खी को पूर्णकीट या इमैगो कहते हैं। इसके सिर के शिखर पर टिलाइनम (ptilinum) नाम की, रुधिर से भरी, एक लचीली थैलीनुमा रचना होती है। इसमें अधिकाधिक रुधिर भरकर इमैगो इसके दबाव से प्यूपावरण के अग्र भाग को तोड़कर ढक्कन की भाँति खोल देता है और मुक्त होते ही टिलाइनम को सिर के भीतर खींच लेता है। टिलाइनम के स्थान पर 'U' के आकार की टिलाइनल खाँच बनी रहती है।

इमैगो के रूप में मुक्त हुई युवा मक्खी रंगहीन होती है। इसके पंख छोटे और शिथिल होते हैं। हवा के संपर्क में आने से ये शीघ्र ही कड़े होकर फैल जाते हैं। शरीर का सामान्य रंग प्रकट होने लगता है। इस प्रकार, इमैगो हवा में उड़ने वाली सामान्य मक्खी में बदल जाता है। 15 से 20 दिन में यह मक्खी स्वयं प्रजनन करने लगती है। 



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