ध्वनि तरंगों का परावर्तन(Reflection of Sound Waves): प्रयोग,ध्वनि परावर्तन के कुछ उपयोग
जब ध्वनि की कोई तरंग एक माध्यम से चलकर दूसरे माध्यम से टकराती है तो वह परावर्तन के पश्चात् पहले माध्यम में लौट आती है। जब हम कुंयें के मुँह पर बोलते हैं तो हमें वे ही शब्द कुयँ से आते सुनाई देते हैं। वास्तव में यह हमारी ही ध्वनि है जो कुंयें के जल के तल से परावर्तित होकर लौटती है। प्रयोगों से पता चलता है कि ध्वनि का परावर्तन उन्हीं नियमों के अनुसार होता है जिनके अनुसार प्रकाश का परावर्तन होता है। अन्तर केवल इतना है कि प्रकाश की तरंगों की अपेक्षा, ध्वनि की तरंगों की तरंगदैर्घ्य बहुत बड़ी होती है। इस कारण से ध्वनि के परावर्तन के लिये परावर्तक तल बड़े आकार का होना चाहिये। दूसरे, ध्वनि के परावर्तन के लिये परावर्तक तल का चिकना होना आवश्यक नहीं है। इसी कारण ध्वनि ईंट की दीवारों, चट्टानों, पेड़ों की पत्तियों, इत्यादि से भी परावर्तित हो जाती है।
ध्वनि तरंगों के परावर्तन को निम्न प्रयोगों से देखा जा सकता है-
(1) समतल द्वारा ध्वनि का परावर्तन : समतल द्वारा ध्वनि का परावर्तन
दिखाने के लिये दो नलियाँ N1 और N2 जो लगभग एक-एक मीटर लम्बी तथा 6 सेमी चौड़ी हो, लेते हैं। इनमें से एक नली (N1) को एक मेज पर रखे ऊर्ध्वाधर लकड़ी के चिकने तख्ते AB के साथ कोण बनाती हुई स्थिति में रखते हैं। इस नली के मुँह पर एक घड़ी रख देते हैं।दूसरी नली के मुँह पर अपना कान रखते हैं। दोनों नलियों के बीच एक लकड़ी का पर्दा रखते हैं जिससे घड़ी द्वारा उत्पन्न ध्वनि सीधी कान पर न पहुँचे। अब नली N2 को इस प्रकार समायोजित करते हैं कि उस पर रखे हुये कान को घड़ी की टिक-टिक स्पष्ट सुनाई दे । इस अवस्था में हम देखेंगे कि दोनों नलियों की अक्षें तख्ते AB पर खींचे गये अभिलम्ब CD के साथ बराबर कोण बनाती हैं। अतः आपतन तथा परावर्तन कोण बराबर हैं; और आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा अभिलम्ब तीनों एक ही तल में हैं।
(2) अवतल तलों द्वारा ध्वनि का परावर्तन : दो बड़े अवतल तल M1 तथा
M2 लगभग 2 फीट की दूरी पर स्टैंडों में इस प्रकार कस देते हैं कि इन दोनों की अक्षें एक ही सीध में रहें तथा उनके परवर्तक तल एक दूसरे के सामने हों। एक अवतल तल M1 के फोकस पर एक घड़ी और दूसरे अवतल त M2 के फोकस पर एक कीप रखते हैं जिसके पीछे लगी हुई रबर की नली कान से लगा लेते हैं। इस स्थिति में घड़ी की टिक-टिक कान में साफ सुनाई पड़ती है। जब कीप को थोड़ा इधर-उधर हटा देते हैं तो घड़ी टिक-टिक की ध्वनि नहीं सुनाई पड़ती। इससे सिद्ध होता है कि प्रकाश की भाँति ध्वनि की तरंगें भी अवतल तलों से परावर्तित हो जाती हैं।
ध्वनि की तरंगें घड़ी से चलकर अवतल तल M1 पर गिरती हैं तथा परावर्तित होकर समान्तर हो जाती हैं। फिर ये तरंगें M2 से परावर्तित होकर उसके फोकस पर मिल जाती हैं।
ध्वनि परावर्तन के कुछ उपयोग (Some uses of Sound Reflection)
ध्वनि परावर्तन के कुछ उपयोग (Some uses of Sound Reflection)
ध्वनि परावर्तन के कई उपयोग होते हैं जिन्हें हम सरलता से कुछ प्रयोगों द्वारा देख सकते हैं। जो इस प्रकार है -
(1) ध्वनि परावर्तक (Sound Reflector) : बड़े-बड़े व्याख्यान भवनों में मंच पर वक्ता के पीछे अवतल अथवा परवलयकार (parabolic) परावर्तक बोर्ड लगे रहते हैं। वक्ता की ध्वनि की तरंगें इन बोर्डों से परावर्तित होकर समान्तर हो जाती हैं तथा दूर बैठे श्रोताओं तक पहुँच जाती है।
(2) बातचीत करने की नली (Speaking Tube) : यह एक धातु की लम्बी नली होती है जिसका एक सिरा फनल के आकार का होता है। जब कोई व्यक्ति इन फनल पर मुँह रखकर बोलता है तो उसकी ध्वनि नली की दीवारों से बार-बार परावर्तित होकर दूसरे सिरे तक पहुँच जाती है जहाँ यह सुनी जा सकती है। इस प्रकार की नलियाँ बड़े-बड़े भवनों में तथा पानी के जहाजों में लगाई जाती है।
(3) कान के पीछे हाथ रखकर सुनना : किसी धीमी ध्वनि के सुनने के लिये हम अपनी हथेली को अवतल मोड़कर कान के पीछे लगा लेते हैं। तब कान पर आने वाली ध्वनि हथेली से परावर्तित होकर कान में पहुँच जाती है।
(4) स्टैथस्कोप (Stethoscope) : डाक्टरों का स्टैंथस्कोप जिससे वे ह्रदय तथा फेफड़ों की परीक्षा करते हैं, ध्वनि के परावर्तन पर ही आधारित है। इसमें एक डिबिया होती है जिसमें तनुपट (diaphragm) लगा रहता है। इस डिबिया से दो नलियाँ जुड़ी रहती है। डाक्टर डिबिया को रोगी के सीने पर रखता है तथा नलियों को कानों में लगा लेता है। सीने की धड़कन के कारण डिबिया का तनुपट कम्पन करने लगता है जिससे कि डिबिया के भीतर वायु में ध्वनि तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं। ये तरंगें नलियों की दीवारों से बार-बार परावर्तित होकर डाक्टर के कानों तक पहुँच जाती हैं तथा वह सीने की धड़कन को सुन लेता है।
(5) समुद्र की गहराई ज्ञात करना : समुद्र की गहराई ज्ञात करने के लिये ध्वनि परावर्तन का उपयोग किया जाता है। जहाज पर रखे यन्त्र की सहायता से बहुत ऊँची आवृत्ति की ध्वनि की तरंगें जिन्हें 'पराश्रव्य तरंगें' (ultrasonic waves) कहते हैं, जल में नीचे भेजते हैं। परावर्तित तरंगें एक-दूसरे यन्त्र से ग्रहण कर लेते हैं। तरंगों की इस पूरी यात्रा का समय ज्ञात कर लेते हैं जिससे समुद्र की गहराई ज्ञात की जा सकती है।
(6) प्रतिध्वनि (Echo) : जब ध्वनि अपने स्रोत से चलकर किसी दूर की पहाड़ी या दीवार से टकराती है तो वह परावर्तित हो जाती है और बाद में सुनाई देती है। ध्वनि की एक निश्चित समय के पश्चात इस पुनरावृत्ति को 'प्रतिध्वनि' कहते हैं। कुयें के मुँह पर ताली बजाने से उसकी प्रतिध्वनि सुनाई देती है। प्रतिध्वनि स्पष्ट सुनने के लिए यह आवश्यक है कि वह मूल ध्वनि से 1/10 सेकण्ड बाद में पहुँचे, क्योंकि शब्द का प्रभाव कान पर शब्द के बन्द हो जाने के 1/10 सेकण्ड बाद तक रहता है। अतः प्रतिध्वनि सुनने के लिये परावर्तक तल ध्वनि के स्रोत से कम से कम 112 फीट दूर होना चाहिये। प्रतिध्वनि के स्पष्ट सुनाई देने के लिये यह भी आवश्यक है कि परावर्तक तल का क्षेत्रफल अधिक हो तथा ध्वनि उच्च आवृत्ति की हो।
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