ध्वनि क्या है?(Sound): ध्वनि की प्रकृति, विभिन्न माध्यमों में संचरण|Hindi


ध्वनि क्या है?(Sound): ध्वनि की प्रकृति, विभिन्न माध्यमों में संचरण

ध्वनि क्या है? (What is Sound?)
ध्वनि शब्द से हम सभी परिचित हैं। साधारणतः जो कुछ हम अपने कानों द्वारा सुनते हैं उसे ही 'ध्वनि' कहते हैं।  दूसरे शब्दों में, ध्वनि एक प्रकार की अनुभूति (sensation) है जिसका अनुभव हम अपने कानों द्वारा कर सकते हैं।  प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि ध्वनि भी प्रकाश, विद्युत, आदि की भाँति एक प्रकार की ऊर्जा है जिसका प्रभाव हमारे कानों पर पड़ता है।


ध्वनि की प्रकृति (nature of sound)
ध्वनि सदैव किसी न किसी वस्तु के कम्पन करने से उत्पन्न होती है । जब हम किसी घण्टे पर चोट मारते हैं तो हमें ध्वनि सुनाई पड़ती है तथा घण्टे को हल्का सा छूने पर उसमें झनझनाहट (कम्पनों) का अनुभव होता है । जैसे ही घण्टे के कम्पन बन्द हो जाते हैं, ध्वनि का सुनाई देना भी बन्द हो जाता है । इसी प्रकार, जब सारंगी, सितार, वायलिन इत्यादि बजाये जाते हैं तो तारों की झनझनाहट अथवा कम्पनों के कारण ध्वनि निकलने लगती है। मनुष्य तथा अन्य जीवधारी भी अपने गले की झिल्ली को कम्पित करके ध्वनि उत्पन्न करते हैं । अतः यह निश्चित है कि ध्वनि सदैव कम्पनों के कारण उत्पन्न होती है, बिना कम्पनों के ध्वनि उत्पन्न नहीं हो सकती।

यहाँ यह बात ध्यान देने की है कि हमें कम्पन करती हुई प्रत्येक वस्तु से ध्वनि नहीं सुनाई देती।
उदाहरण के लिये- यदि हम अपने हाथ को वायु में इधर-उधर हिलायें (अर्थात् कम्पन करायें) तो हमें कोई ध्वनि सुनाई नहीं देगी । इसका कारण यह में है कि हमारा हाथ बहुत धीरे-धीरे कम्पन करता है। वास्तव में हम किसी वस्तु से ध्वनि तभी सुन सकते हैं जब वह एक सेकण्ड में 20 से अधिक कम्पन कर रही हो । इसके अतिरिक्त यदि कोई वस्तु एक सेकण्ड में 20,000 कर रही हो तब भी ध्वनि सुनाई नहीं देती।


किसी वस्तु के कम्पन करने पर ध्वनि उत्पन्न होती है । यह ध्वनि वस्तु से हमारे कान तक वायु में चलकर आती है। यदि वस्तु तथा हमारे कान के बीच वायु न हो, तो ध्वनि हमारे कान तक नहीं आ सकती है।

इस बात को हम निम्न प्रयोग द्वारा दिखा सकते हैं :

प्रयोग - काँच का एक जार लेकर उसमें वायुरोधी डाट लगा देते हैं। जार में कहीं से भी वायु जाने का मार्ग नहीं होना चाहिये। जार के अन्दर एक विद्युत-घण्टी डाट से टाँग देते हैं और उसके दोनों तारों को डाट के बाहर एक बैटरी से जोड़ देते हैं। 
ध्वनि क्या है?(Sound): ध्वनि की प्रकृति, विभिन्न माध्यमों में संचरण|Hindi

जार को नीचे से एक वायु निकालने वाले पम्प से सम्बन्धित कर देते हैं। प्रारम्भ में जब जार में वायु है तो घण्टी बजने पर उसकी ध्वनि सुनाई पड़ती है। जब पम्प से जार की वायु निकालनी प्रारम्भ कर देते हैं तो घण्टी की ध्वनि धीमी सुनाई पड़ने लगती है। कुछ देर बाद, जार में निर्वात होने पर घण्टी की ध्वनि बिल्कुल सुनाई नहीं पड़ती। अब जार में धीरे-धीरे वायु प्रवेश कराते हैं घण्टी की ध्वनि फिर सुनाई पड़ने लगती है। इससे सिद्ध होता है कि ध्वनि निर्वात में होकर नहीं चल सकती, अर्थात् ध्वनि के लिये माध्यम की आवश्यकता है।


विभिन्न माध्यमों में ध्वनि का संचरण
ध्वनि प्रत्येक माध्यम (गैस, द्रव व ठोस) में चल सकती है। यही कारण है कि गोताखोर जल के भीतर होने पर भी ध्वनि को सुन लेता है। उसी प्रकार रेल की पटरी से कान लगाकर बहुत दूर से आती हुई रेलगाड़ी की ध्वनि सुनी जा सकती है। द्रवों में ध्वनि गैसों की अपेक्षा अधिक तेजी से चलती है और ठोसों में सबसे अधिक तेजी से चलती है।

किसी माध्यम में ध्वनि तरंगो (waves) द्वारा चलती है: हम यह जानते हैं कि ध्वनि एक प्रकार की ऊर्जा है, और यह एक स्थान से दूसरे तक माध्यम के द्वारा ही चलती है। अब यह एक स्वाभाविक प्रश्न है कि किसी माध्यम में ध्वनि किस प्रकार चलती है ? जिस रीति से ध्वनि किसी माध्यम में चलती है उसको 'तरंग गति' (wave motion) कहते हैं।

तरंग गति को निम्न उदाहरण  से समझा जा सकता है

जब हम किसी तालाब के शान्त जल में एक पत्थर फेंकते हैं तो जिस स्थान पर तालाब में पत्थर गिरता है वहाँ पर जल में हलचल (disturbance) उत्पन्न हो जाती है। यह हलचल थोड़े ही समय में फैलती हुई तालाब के किनारों तक चली जाती है, यद्यपि जल के कण अपने ही स्थान पर रहते हैं। इसका कारण यह है कि पत्थर के फेंकने से जल के जिन कणों में हलचल होती है, वे कण अपने पास वाले कणों को गतिमान कर देते हैं। इस प्रकार प्रत्येक गतिमान कण, अपने पास के कणों को गतिमान करता जाता है जब तक कि यह हलचल तालाब के किनारों तक नहीं पहुँच जाती। इस प्रकार कण अपने ही सथान पर ऊपर नीचे हिलते रहकर माध्यम की हलचल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचा देते हैं। ठीक इसी प्रकार , जब कोई वस्तु कम्पन करती है तो वह अपने समीप के माध्यम के कणों को गतिमान कर देती है। ये कण अपने पास वाले कणों को गतिमान कर देते हैं, और इस प्रकार कम्पन करने वाली वस्तु की हलचल या गतिज ऊर्जा कणों के द्वारा (स्वयं कणों के बिना चले) एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाती है। इसी को 'तरंग' कहते हैं। इस प्रकार तरंग माध्यम में होने वाली वह हलचल है जो बिना रूप बदले माध्यम के कणों के द्वारा एक निश्चित वेग से आगे बढ़ती है। तरंग का यह वेग माध्यम की प्रकृति पर निर्भर करता है।

उपर्युक्त लेख में आपने यह जाना कि ध्वनि क्या होती है उसकी प्रकृति क्या होती है तथा उसका संचरण कैसे और किन किन माध्यमों में होता है। इन सभी को आप दिए गए उदाहरणों द्वारा समझ सकते हैं।



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