तरंगों के प्रकार(Waves): अनुप्रस्थ तरंग,अनुदैर्ध्य तरंग उदाहरण सहित
तरंगों के प्रकार (Types of Waves)
जब किसी माध्यम में कोई तरंग चलती है तो माध्यम के कण कम्पन करने लगते हैं। कणों के कम्पनों की दिशा के अनुसार तरंगें दो प्रकार की होती हैं:- - अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse Waves)
- अनुदैर्घ्य तरंगे (Longitudinal Waves)
(1) अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse Waves)
जिस तरंग में माध्यम के कण तरंग के चलने की दिशा के लम्बवत् कम्पन करते हैं उस तरंग को 'अनुप्रस्थ तरंग' कहते हैं।
अनुप्रस्थ तरंगों को हम निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा समझ सकते हैं -
उदाहरण (i) : जब तालाब के जल में पत्थर फैकते हैं तो अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न होती हैं। ये तरंगे एक स्थान से दूसरे स्थान को जाती दिखाई देती हैं। जल के कण अपने ही स्थान पर ऊपर-नीचे कम्पन करते रहते हैं, यद्यपि ऐसा दिख पड़ता है जैसे तरंगों के साथ-साथ जल भी किनारे की ओर चला आ रहा हो। किसी क्षण तालाब के कुछ भागों में जल उठा हुआ होता है तथा कुछभागों में दबा हुआ होता है। उठे हुए भाग को 'श्रृंग' (crest) दबे हुए भाग को 'गर्त' (trough) कहते हैं। यदि जल का ऊपर से फोटो लिया जाये तो वह इस प्रकार का होगा जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। एक गर्त से अगले गर्त, अथवा एक श्रृंग से अगले श्रृंग तक की दूरी को 'तरंग दैर्घ्य' कहते हैं। दूसरे शब्दों में, एक ही कला के दो क्रमागत कणों के बीच की दूरी को तरंगदैर्घ्य कहते हैं। इसे 'λ' (लैम्डा) से प्रदर्शित करते हैं। चित्र में यह दूरी AB से दिखाई गई है। माध्यम का कोई कण एक बार ऊपर-नीचे होने में जितना समय लेता है उतने समय में तरंग एक श्रृंग (या गर्त) से दूसरे श्रृंग (या गर्त) पर पहुँच जाती है। इस समय को तरंग का 'आवर्तकाल' कहते हैं।
अनुप्रस्थ तरंगों को हम निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा समझ सकते हैं -
उदाहरण (i) : जब तालाब के जल में पत्थर फैकते हैं तो अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न होती हैं। ये तरंगे एक स्थान से दूसरे स्थान को जाती दिखाई देती हैं। जल के कण अपने ही स्थान पर ऊपर-नीचे कम्पन करते रहते हैं, यद्यपि ऐसा दिख पड़ता है जैसे तरंगों के साथ-साथ जल भी किनारे की ओर चला आ रहा हो। किसी क्षण तालाब के कुछ भागों में जल उठा हुआ होता है तथा कुछभागों में दबा हुआ होता है। उठे हुए भाग को 'श्रृंग' (crest) दबे हुए भाग को 'गर्त' (trough) कहते हैं। यदि जल का ऊपर से फोटो लिया जाये तो वह इस प्रकार का होगा जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। एक गर्त से अगले गर्त, अथवा एक श्रृंग से अगले श्रृंग तक की दूरी को 'तरंग दैर्घ्य' कहते हैं। दूसरे शब्दों में, एक ही कला के दो क्रमागत कणों के बीच की दूरी को तरंगदैर्घ्य कहते हैं। इसे 'λ' (लैम्डा) से प्रदर्शित करते हैं। चित्र में यह दूरी AB से दिखाई गई है। माध्यम का कोई कण एक बार ऊपर-नीचे होने में जितना समय लेता है उतने समय में तरंग एक श्रृंग (या गर्त) से दूसरे श्रृंग (या गर्त) पर पहुँच जाती है। इस समय को तरंग का 'आवर्तकाल' कहते हैं।
उदाहरण (ii): यदि हम किसी लम्बी रस्सी के एक सिरे को दीवार में गड़ी कील से बाँध दें तथा दूसरे सिरे को हाथ से ऊपर-नीचे झटका दें तो रस्सी में अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं। तरंग एक सिरे से दूसरे सिरे तक जाती है, परन्तु रस्सी का प्रत्येक कण अपने ही स्थान पर ऊपर-नीचे हिलता रहता है। यदि हम रस्सी के किसी स्थान पर चॉक से निशान लगाकर उसे ध्यान से देखें तो निशान रस्सी की लम्बाई के लम्बवत् कम्पन करता दिखाई देता है। अतः रस्सी में अनुप्रस्थ तरंगें हैं।
उदाहरण (iii) : यदि सितार, सारंगी अथवा वायलिन के तार को खींचकर छोड़ा जाये तो उसमें अनुप्रस्थ तरंगें चलती हैं। प्रकाश की तरंगें भी अनुप्रस्थ हैं।
अनुप्रस्थ तरंगें केवल ठोसों में उत्पन्न की जा सकती हैं जिनमें दृढ़ता (rigidity) होती है। गैसों में अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न नहीं की जा सकतीं क्योंकि उनमें दृढ़ता नहीं होती। द्रवों में अनुप्रस्थ तरंगें उनके भीतर नहीं बन सकतीं, केवल उनके तल पर ही बन सकती हैं।
(2) अनुदैर्घ्य तरंगें (Longitudinal Waves)
जिस तरंग में माध्यम के कण तरंग के चलने की दिशा के अनुदिश कम्पन करते हैं उस तरंग को 'अनुदैर्घ्य तरंग' कहते हैं।
अनुदैर्घ्य तरंगों को हम निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा समझ सकते हैं -
उदाहरण (i): एक पतले तार के लम्बे स्प्रिंग का एक सिरा किसी दृढ़ आधार से बांध देते है तथा दूसरा सिरा हाथ में पकड़ते है। जब हम हाथ को आगे-पीछे दबाते तथा खींचते हैं तो स्प्रिंग का प्रत्येक चक्कर स्प्रिंग की लम्बाई के समान्तर कम्पन करने लगता है। किसी भी क्षण तार के चक्कर कुछ स्थानों पर पास-पास तथा कुछ स्थानों पर दूर-दूर होते हैं। जहाँ पर स्प्रिंग के चक्कर पास-पास आ जाते हैं। वहाँ 'संपीडन' (compression) की दशा कहलाती है, जहाँ दूर-दूर हो जाते हैं वहाँ 'विरलन' (rarefaction) की दशा कहलाती है। ये संपीडन और विरलन की दशायें स्प्रिंग की लम्बाई की दिशा में आगे बढ़ती रहती हैं। ये ही अनुदैर्घ्य तरंगें हैं।
अनुदैर्घ्य तरंगों को हम निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा समझ सकते हैं -
उदाहरण (i): एक पतले तार के लम्बे स्प्रिंग का एक सिरा किसी दृढ़ आधार से बांध देते है तथा दूसरा सिरा हाथ में पकड़ते है। जब हम हाथ को आगे-पीछे दबाते तथा खींचते हैं तो स्प्रिंग का प्रत्येक चक्कर स्प्रिंग की लम्बाई के समान्तर कम्पन करने लगता है। किसी भी क्षण तार के चक्कर कुछ स्थानों पर पास-पास तथा कुछ स्थानों पर दूर-दूर होते हैं। जहाँ पर स्प्रिंग के चक्कर पास-पास आ जाते हैं। वहाँ 'संपीडन' (compression) की दशा कहलाती है, जहाँ दूर-दूर हो जाते हैं वहाँ 'विरलन' (rarefaction) की दशा कहलाती है। ये संपीडन और विरलन की दशायें स्प्रिंग की लम्बाई की दिशा में आगे बढ़ती रहती हैं। ये ही अनुदैर्घ्य तरंगें हैं।
इस प्रकार जब किसी माध्यम में अनुदैर्ध्य तरंगें संचरित होती हैं तो उस माध्यम में किसी भी क्षण संपीडन व विरलन की दशायें एकान्तर क्रम में विद्यमान रहती हैं। ये दशायें तरंगों के चलने की दिशा में आगे बढ़ती रहती हैं।
चूँकि संपीडन वाले स्थानों पर माध्यम के कण सामान्य अवस्था की अपेक्षा पास-पास होते हैं, अतः वहाँ माध्यम का घनत्व व दाब सामान्य अवस्था की अपेक्षा अधिक रहता है। इसी प्रकार, विरलन वाले स्थानों पर माध्यम का घनत्व व दाब सामान्य अवस्था की अपेक्षा कम रहता है। एक संपीडन अथवा एक विरलन के मध्य भाग से अगले संपीडन अथवा विरलन के मध्य भाग तक की दूरी 'तरंग दैर्घ्य' (λ) कहलाती है।
अनुदैर्घ्य तरंगें सभी प्रकार के माध्यमों (ठोस, द्रव, गैस) में उत्पन्न की जा सकती हैं। ध्वनि प्रत्येक माध्यम में चाहे वह ठोस हो, द्रव हो, अथवा गैस हो, अनुदैर्घ्य तरंगों के ही रूप में चलती है।
चूँकि संपीडन वाले स्थानों पर माध्यम के कण सामान्य अवस्था की अपेक्षा पास-पास होते हैं, अतः वहाँ माध्यम का घनत्व व दाब सामान्य अवस्था की अपेक्षा अधिक रहता है। इसी प्रकार, विरलन वाले स्थानों पर माध्यम का घनत्व व दाब सामान्य अवस्था की अपेक्षा कम रहता है। एक संपीडन अथवा एक विरलन के मध्य भाग से अगले संपीडन अथवा विरलन के मध्य भाग तक की दूरी 'तरंग दैर्घ्य' (λ) कहलाती है।
अनुदैर्घ्य तरंगें सभी प्रकार के माध्यमों (ठोस, द्रव, गैस) में उत्पन्न की जा सकती हैं। ध्वनि प्रत्येक माध्यम में चाहे वह ठोस हो, द्रव हो, अथवा गैस हो, अनुदैर्घ्य तरंगों के ही रूप में चलती है।
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