ध्वनि का वेग(Velocity of Sound):उदाहरण,विभिन्न माध्यमों में ध्वनि का वेग|hindi


ध्वनि का वेग(Velocity of Sound):उदाहरण,विभिन्न माध्यमों में ध्वनि का वेग

ध्वनि का वेग (Velocity of Sound)
यह एक साधारण अनुभव की बात है कि ध्वनि को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने में समय लगता है।

इसके अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं जैसे -
  1. बरसात के दिनों में आकाश में बिजली की चमक तथा कड़क एक साथ उत्पन्न होती हैं, परन्तु चमक पहले दिखाई देती है तथा कड़क की ध्वनि बाद में सुनाई देती है।
  2. क्रिकेट का खिलाड़ी जब बल्ले से गेंद में चोट मारता है तो दूर बैठे दर्शकों को गेंद पहले दिखाई दे जाती है, चोट की ध्वनि बाद में सुनाई देती है।
  3. इसी प्रकार, दूर खड़ा कोई व्यक्ति जब बन्दूक दागता है तो बन्दूक से निकला धुआँ पहले दिखाई दे जाता है, ध्वनि बाद में सुनाई देती है।
इन सब उदारहरणों से यह स्पष्ट है कि ध्वनि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने में, प्रकाश की अपेक्षा, अधिक समय लगता है।

ध्वनि तरंगें किसी भौतिक माध्यम (जैसे- वायु, जल, लोहा) में ही संचरित होती हैं। इनके अतिरिक्त ऐसी तरंगें भी होती हैं जिनके संचरण के लिये माध्यम की आवश्यकता नहीं होती जैसे, प्रकाश तरंगें, ऊष्मीय विकिरण, रेडियो तरंगें, एक्स किरणें, गामा किरणें आदि। इन्हें 'विद्युत-चुम्बकीय तरंगें' (electromagnetic waves) कहते हैं ।

विद्युत चुम्बकीय तरंगों में वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्र परस्पर लम्बवत् तलों में कम्पन्न करते रहते हैं तथा रिक्त स्थान में प्रकाश की चाल से आगे बढ़ते हैं। इन क्षेत्रों के संचरण की दिशा उन तलों के लम्बवत् होती है जिनमें ये स्थित होते हैं। इस प्रकार विद्युत चुम्बकीय तरंगें सदैव अनुप्रस्थ होती हैं तथा सभी तरंगों की चाल प्रकाश की चाल के बराबर होती है। ध्वनि तरंगें अनुप्रस्थ तथा अनुदैर्घ्य दोनों प्रकार की हो सकती हैं तथा विभिन्न माध्यमों में उत्पन्न तरंगों का वेग भिन्न-भिन्न होता है।

प्रयोगों द्वारा पता चलता है कि ध्वनि के संचरण के लिये वही वस्तु माध्यम का काम दे सकती है जिसमें प्रतयास्थता (elasticity) हो तथा जो 'अविच्छिन्न' (continuous) रूप से ध्वनि-स्रोत से कान तक फैली हो। जिन वस्तुओं में ये गुण नहीं होते जैसे लकड़ी का बुरादा, नमदा, इत्यादि, उनमें को होकर ध्वनि नहीं चल सकती ।

अनुप्रस्थ तरंगें केवल ठोसों में ही सम्भव हैं क्योंकि ठोसों में दृढ़ता (rigidity) होती हैं। जबकि अनुदैर्घ्य तरंगें ठोस, द्रव तथा गैस तीनों प्रकार के माध्यमों में संचरित हो सकती है। किसी माध्यम में अनुदैर्घ्य तरंगों का वेग केवल माध्यम के गुणों पर निर्भर करता है, तरंग के आयाम अथवा रूप (shape) पर नहीं। माध्यम के वे गुण जिनके द्वारा अनुदैर्घ्य तरंगों का वेग नियन्त्रित होता है, प्रत्यास्थता (elasticity) तथा घनत्व (d) हैं।

विभिन्न माध्यमों में ध्वनि (अनुदैर्घ्य तरंगों) का वेग भिन्न-भिन्न होता है। किसी माध्यम में ध्वनि (अनुदैर्घ्य तरंगों) का वेग मुख्यतः माध्यम की प्रत्यास्थता (E) तथा घनत्व (d) पर निर्भर करता है।

ध्वनि को वेग
v = √E/d

गैसों के सापेक्ष द्रवों में प्रत्यास्थता अधिक होती है तथा ठोसों में सबसे अधिक होती है। यही कारण है कि द्रवों में ध्वनि का वेग गैसों की अपेक्षा अधिक तथा ठोसों में सबसे अधिक होता हैं। यदि रेल की पटरी पर एक व्यक्ति हथोड़े से चोट करे तथा कुछ दूरी पर दूसरा व्यक्ति सुने तो उसे थोड़े समय के अन्तर से दो ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। पहली ध्वनि पटरी में को होकर पहुँचती है तथा दूसरी वायु में होकर। यदि दूसरा व्यक्ति अपना कान पटरी से लगा ले तो पहले पहुँचने वाली ध्वनि तीव्र लगती है। परन्तु बाद में पहुँचने वाली वैसे ही रहती है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पहले पहुँचने वाली ध्वनि वह है जो पटरी में को होकर जाती है।

वायु में ध्वनि (अनुदैर्घ्य तरंगों) का वेग  332मीटर/सेकण्ड होता है जबकि जल में ध्वनि (अनुदैर्घ्य तरंगों) का वेग 1450 मीटर/सेकण्ड (जो वायु की सापेक्ष चार गुने से अधिक है)। लोहे में ध्वनि का वेग वायु में ध्वनि के वेग से पन्द्रह गुना होता है।

जब ध्वनि एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है तो ध्वनि का वेग तथा तरंगदैर्घ्य बदल जाते हैं, जबकि आवृत्ति नहीं बदलती है। अतः किसी माध्यम में ध्वनि का वेग ध्वनि की आवृत्ति पर निर्भर नहीं करता।



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