मच्छर का जीवन चक्र (Life cycle of Mosquito)|hindi


मच्छर का जीवन चक्र (Life cycle of Mosquito)
मच्छर का जीवन चक्र (Life cycle of Mosquito)|hindi

नर एवं मादा मच्छरों में ऐन्टिनी, मैक्सिलरी स्पर्शकों आदि की संरचना में विभिन्नता होने के कारण स्पष्ट लिंग भेद (sexual dimorphism) होता है।
मच्छरों के जीवन चक्र में कई अवस्थाएं होती हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

मैथुन (Copulation) : मक्खी के विपरीत, मच्छरों में Copulation उड़ते समय होता है। उड़ने में सम्भवतः मादा मच्छर की भिनभिनाहट तीव्र होती है। नर इसी से इसकी ओर आकर्षित होता है और उड़ते-उड़ते ही इस पर बैठकर पंजेदार claspers द्वारा इसे पकड़ लेता है। इसके बाद नर मादा की vagina में शुक्राणु (sperms) छोड़ देता है। फिर दोनों मच्छर अलग हो जाते हैं।

अण्डनिक्षेपण (Oviposition) : Copulation के बाद मादा मच्छर, सम्भवतः आधी रात के बाद, पोखर आदि के स्थिर जल की सतह पर अण्डे देती है। Oviposition से पहले मादा के लिए रुधिरपान करना आवश्यक होता है। मादा ऐनोफेलीज एक बार में 40 से 100, परन्तु मादा क्यूलेक्स 150 से 300 अण्डे देती है। मादा क्यूलेक्स अण्डों को अपने पिछले पैरों द्वारा जल-सतह पर सीधे खड़ा रखकर एक दूसरे से चिपकाती जाती है। जिससे इसके अण्डे नाव जैसे दिखाई देते हैं तथा समूहों में जल की सतह पर तैरते रहते हैं जिन्हें प्लावी बेड़े (floating rafts) कहते हैं। raft के ऊपरी भाग में, अण्डों के बीच-बीच में फँसे हवा के बुलबुले ही इसे जल में तैराते हैं। जबकि मादा ऐनोफेलीज के अण्डे जल-सतह पर, समूहों में नहीं, बल्कि अकेले तैरते रहते हैं।
मच्छर का जीवन चक्र (Life cycle of Mosquito)|hindi


अण्डे (Eggs) : क्यूलेक्स के अण्डे लम्बे, cigar-shaped होते हैं। इनका सँकरा सिरा Floating rafts में ऊपर की ओर तथा चौड़ा गोल सिरा नीचे की ओर रहता है। निचले सिरे पर स्थित एक छोटी प्यालीनुमा रचना को माइक्रोपाइल टोपी (micropyle cap) कहते हैं। पहले अण्डे सफेद होते हैं, परन्तु बाद में गहरे grey रंग के हो जाते हैं। ऐनोफेलीज के अण्डे नौकाकार एवं काले होते हैं। प्रत्येक अण्डे के पार्श्वों में झिल्ली की बनी तथा वायु से भरी एक-एक छतरीनुमा रचना होती है जिसे “वायु प्लाव" (air float) कहते हैं। air float के कारण ही अण्डे नौकाकार होते हैं और जल की सतह पर तैरते हैं।
मच्छर का जीवन चक्र (Life cycle of Mosquito)|hindi


डिम्भक (Larva) : दो-तीन दिन में ही अण्डों की hatching हो जाती है, और प्रत्येक में से एक larva निकल आता है जिसे परिसर्पक अर्थात् wriggler कहते हैं। क्यूलेक्स का larva micropyle cap को तोड़ता हुआ सीधा जल में चला जाता है। प्रारम्भ में wriggler लगभग एक मिमी लम्बा और पारदर्शक होता है। जल में यह 3 से 14 दिन तक wriggling movement द्वारा तैरता रहता है तथा पोषण करता है तथा चार बार moulting या ecdysis करके प्रत्येक moulting के समय वृद्धि करता है। पोषण के लिए क्यूलेक्स का larva जलाशय के तल पर तथा ऐनोफेलीज का larva जल की सतह पर भोजन ग्रहण करता है।

Larva का शरीर भी सिर, वक्ष एवं उदर भागों में विभेदित होता है। सिर, बड़ा तथा चपटा-सा होता है। इस पर दोनों ओर एक-एक संयुक्त तथा एक-एक सरल नेत्र (ocelli) होते हैं। संयुक्त नेत्रों के ठीक आगे एक-एक द्विखण्डीय antennae होती हैं। इसके अगले छोर पर मुखद्वार होता है। इसके इधर-उधर एक-एक दन्तयुक्त mandibles एवं bristles युक्त maxillae होती हैं। अधरतल की ओर लेबियम (labium) होता है। इसके पृष्ठतल की ओर, आगे निकले एक जोड़ी प्लेटनुमा पिण्डों को feeding brushes कहते हैं, क्योंकि इन पर कड़े शूक होते हैं और ये निकटवर्ती जल में प्रवाह धाराएँ उत्पन्न करते रहते हैं। इससे जल में उपस्थित सूक्ष्म जीव (शैवाल, प्रोटोजोआ आदि) larva के मुख के पास आते रहते हैं। इन्हें larva मैन्डीबल्स तथा मैक्सिली की सहायता से पकड़ता है और चबाकर ग्रहण कर लेता है। अतः इसके मुख उपांग चबाने के लिए उपयोजित (chewing type) होते हैं।
Larva के thorax में सिर से कुछ चौड़ा तथा पादविहीन एक ही खण्ड होता है। इसके पार्श्वों में लम्बे bristles के तीन जोड़ी गुच्छे होते हैं। प्रत्येक गुच्छा एक छोटी गुलिका (tubercle) से निकलता है। इसका उदर भाग पतला होता है जिसमें 9-खण्ड होते है। खण्ड आगे से पीछे की ओर सँकरे होते जाते हैं। प्रत्येक के पार्श्वों में एक-एक शूक-समूह (tufts of bristles) होते हैं।

Culex के larva के 8वें खण्ड के पृष्ठतल पर, काइटिन की बनी एक लम्बी, शंक्वाकार श्वसन निनाल (respiratory siphon) होती है। समय-समय पर larva जल सतह पर आकर siphon के छोर को जल से बाहर निकालता है और इस पर स्थित दो श्वास-रन्ध्रों (spiracles) द्वारा वायु ग्रहण करता है। इस समय, इसका शरीर श्वसन निनाल के द्वारा ही, जल में एक कोण पर लटका रहता है। प्रत्येक श्वास रन्ध्र siphon में स्थित एक वायु नाल (air-tube) में खुलता है जो शरीर के वायु-नलिका तन्त्र (tracheal system) से जुड़ी रहती है। श्वास-रन्ध्रों के पास पाँच पल्लिकाएँ (flaps) होती हैं जो जल में तैरते समय रन्ध्रों को ढककर जल को श्वास नलियों में भरने से रोकती हैं। श्वसन निनाल पर भी दो शूक-समूह तथा चपटे काँटेनुमा शूकों की दो कतारें या कंकतांग (pecten) होती हैं। स्वयं 8वें खण्ड के पृष्ठतल पर सूक्ष्म शल्कों की एक, दो या अधिक पंक्तियाँ होती हैं। इन्हें मिलाकर कंघी (comb) कहते हैं। कंकतांग एवं कंघी डिम्भक को साँस लेते समय जल सतह पर साधती है।

ऐनोफेलीज के larva में respiratory siphon नहीं होती है केवल दो श्वास रन्ध्र 8वें खण्ड के पृष्ठतल पर एक उठी हुई सी चौकोर प्लेट पर स्थित होते हैं। अतः साँस लेते समय डिम्भक पानी में लटका नहीं रहता, बल्कि सतह के समानान्तर सधा तैरता रहता है। इसमें श्वास रन्ध्रों के निकट पाँच flaps तथा पेक्टेन तो होते हैं, परन्तु comb नहीं होती है।

क्यूलेक्स एवं ऐनोफेलीज, दोनों के larva में इसका 9वाँ उदरखण्ड काइटिन की एक dorsal plate द्वारा ढका होता है। इसके पश्च छोर पर, anus को घेरे हुए, चार पत्तीनुमा tracheal gills होते हैं। ये जल में घुली O2 को ग्रहण करके सहायक श्वसनांगों (accessory respiratory organs) का काम करते हैं। जल की सतह पर आने के लिए larva सम्भवतः इन्हीं से चप्पुओं (paddles) का काम लेता है। नवें खण्ड पर लम्बे शूकों के एक पृष्ठ तथा एक अधर गुच्छे जल में तैरते समय पतवार (rudder) का काम करते हैं।

लगभग दो सप्ताह तक सक्रिय जीवन व्यतीत करने के बाद larva चौथे moulting पर 6 से 12 मिमी लम्बा हो जाता है। ऐनोफेलीज का larva कुछ मोटा होता है।

प्यूपा (Pupa) : चौथी moulting के बाद ही larva सुस्त होकर जल में नीचे डूब जाता और comma-shaped के प्यूपा में बदल जाता है। मक्खी के विपरीत, मच्छर का pupa खोलविहीन एवं अत्यधिक सक्रिय होता है। क्यूलेक्स का प्यूपा grey रंग का होता है, परन्तु ऐनोफेलीज का हरियाला-सा होता है। इसका शरीर दो भागों में विभेदित होता है आगे, सिर एवं वक्ष के मिलने से बना बड़ा शिरोवक्ष (cephalothorax) तथा पीछे अधर भाग की ओर मुड़ा हुआ, सँकरा एवं लम्बा 9-खण्डीय उदर। Cephalothorax के मध्यपृष्ठ भाग पर एक जोड़ी छोटे एवं नालवत् trumpet-shaped respiratory horns या trumpets होते हैं। इन्हें प्यूपा जल सतह पर बाहर निकालकर, larva की भाँति, साँस लेता रहता है। ऐनोफेलीज के प्यूपा में respiratory horns कुछ छोटे, लेकिन श्वास- रन्ध्र कुछ चौड़े होते हैं। विघ्न उत्पन्न होने पर प्यूपा तुरन्त जल में कलाबाजी खाता हुआ नीचे चला जाता है। इसीलिए, इसे सामान्यतः कलाबाज (tumbler) कहते हैं। हल्के एवं प्लावी (buoyant) शरीर के कारण, शीघ्र ही प्यूपा फिर जल सतह पर आ जाता है। इसके 8वें उदरखण्ड से जुड़े दो पत्तीनुमा fins या paddles इसे कलाबाजी में सहायता करते हैं। प्रत्येक पैडल के छोर पर क्यूलेक्स में एक तथा ऐनोफेलीज में दो महीन शूक होते हैं। प्रत्येक श्वसन-शृंग के छोर पर, श्वास रन्ध्र के चारों ओर महीन शूकों का घेरा होता है जो जल को श्रृंग में भर जाने से रोकता है। प्यूपा के सभी उदरखण्डों पर बड़े-बड़े शूकों के समूह पाए जाते हैं।

कायान्तरण (Metamorphosis) : प्यूपा का जीवनकाल छोटा, प्रायः दो से सात दिन तक का ही होता है, क्योंकि यह भोजन ग्रहण नहीं करता, केवल संचित पोषक पदार्थों पर निर्वाह करता है। इसमें मुखद्वार एवं गुदा नहीं होता है। मक्खी की भाँति, इसमें भीतर histolysis एवं ऊतक-उत्पत्ति (histogenesis) द्वारा वयस्क मच्छर के अंगों का निर्माण होता है।

मक्खी की भाँति, मच्छर में भी कायान्तरण complete या holometabolic होता है। अण्डे से निकला larva तथा larva के रूपान्तरण से बना प्यूपा जलीय प्रावस्था होती है। प्यूपा के कायान्तरण से वयस्क बनता है।

पूर्णकीट या इमैगो (Imago): कायान्तरण के दौरान प्यूपा अधिकांश समय जल सतह पर ही तैरता है। कायान्तरण पूरा होने पर श्वसन शृंगों के बीच से मध्यपृष्ठ रेखा पर इसके cephalothorax की देहभित्ति फट जाती है। अतः युवा मच्छर, अर्थात् इमैगो बाहर आ जाता है। यह कुछ समय प्यूपा की निर्जीव भित्ति पर बैठकर अपने पंखों को सुखाता है, फिर वायु में उड़ जाता है।

मच्छर का जीवन-चक्र लगभग एक महीने में पूरा होता है। एक सप्ताह बाद नया मच्छर स्वयं प्रजनन करने लगता है। नर मच्छर का जीवनकाल अधिकतम तीन सप्ताह का होता है। मैथुन द्वारा परिपक्व शुक्राणुओं को मादा के शरीर में पहुँचाने के बाद इसकी मृत्यु हो जाती है। मादा मच्छर एक से कई महीने तक जीवित रह सकती है। सब अण्डे देने के बाद इसकी भी मृत्यु हो जाती है।



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