पौधों में वक्रण गतियाँ (curvature movements in plants)|hindi


पौधों में वक्रण गतियाँ (curvature movements in plants)
पौधों में वक्रण गतियाँ (curvature movements in plants)|hindi

वक्रण गतियाँ में पौधे अपने स्थान पर स्थिर रहते हैं, उनके अंगों की स्थिति में परिवर्तन होता है जिससे वक्रता आ जाती है। ये गतियाँ निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं-
  1. यान्त्रिक गतियाँ (Mechanical Movements) 
  2. जैव गतियाँ (Vital Movements)

(1) यान्त्रिक गतियाँ (Mechanical Movements)

ये गतियाँ पौधों के अजीवित (nonliving) अंगों में पायी जाती हैं।

इस प्रकार की गतियाँ जल की उपस्थिति या अनुपस्थिति पर निर्भर करती हैं जिससे इन्हें आर्द्रता-प्रेरित गति (hygroscopic movements) भी कहते हैं। फर्न बीजाणुधानी का वलय (annulus) कोशिकाओं से जल के वाष्पन के कारण पीछे की ओर मुड़ जाता है। इक्वीसीटम (Equisetum) के बीजाणु के साथ लगे इलेटर (elaters) जल की कमी होने पर फैल जाते हैं।

पौधों में वक्रण गतियाँ (curvature movements in plants)|hindi


(2) जैव गतियाँ (Vital Movements)

ये वक्रण गतियाँ पौधों के जीवित अंगों में पायी जाती हैं। गतियाँ दो प्रकार की होती हैं -

  • स्वत: गतियाँ (Autonomous=spontaneous movements) — ये गतियाँ पौधे के शरीर की आन्तरिक योग्यताओं व कारकों के कारण होती हैं।
  • प्रेरित गतियाँ (Paratonic=induced movements)—ये बाह्य कारक अथवा उद्दीपन के कारण होती हैं।

1. स्वतः गतियाँ (Autonomous=spontaneous movements)
दो प्रकार की होती हैं—

(A) परिवर्तन गति (Movements of variation) —इस प्रकार की गति पेपिलियोनेसी उपकुल के पौधों डैस्मोडियम गायरेंस (Desmodium gyrans = Indian telegraph plant) में पायी जाती है। इस पौधे की संयुक्त पत्ती में एक बड़ा अन्तस्थ पत्रक (terminal leaflet) होता है तथा दो छोटे पार्श्व-पत्रक होते हैं।

(B) वृद्धि गति (Movements of growth) — इन गतियों में एक समय में पौधे के एक ओर अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि होती है और अन्य समय में दूसरी ओर अधिक वृद्धि होती है। ये गतियाँ अग्रलिखित तीन प्रकार की होती हैं—
  • शिखाचक्रण (Nutation) — कभी-कभी पौधे के शरीर का कोई भाग सर्पिल ढंग से वृद्धि करता है, जैसे कुकुरबिटेसी कुल के पौधों में प्रतान (tendril)।
  • अधोवृद्धिवर्तन (Hyponasty) – पत्ती के निचले भाग में अधिकतम् वृद्धि होने से पत्ती ऊपर की ओर मुड़ जाती है, जैसे फर्न की नयी पत्ती की कुण्डलित (circinate) अवस्था। उसी प्रकार से पुष्पपत्रों (floral parts) की निचली सतह पर अधिक वृद्धि होने के कारण पुष्प बन्द हो जाते हैं।
  • अधोकुंचन (Epinasty) — इस गति में पत्ती के ऊपरी पक्ष में अधिकतम् वृद्धि होती है, जिससे कुण्डलित (circinate) अवस्था वाली फर्न की पत्ती पूर्णरूप से खुल जाती है। पुष्प में पुष्पपत्रों की ऊपरी सतह पर अधिक वृद्धि होने के कारण पुष्प कलिका खुल जाती है।
अधोवृद्धिवर्तन (hyponasty) तथा अधोकुंचन (epinasty) को पोस्त (poppy) के पुष्प में स्पष्ट देखा जा सकता है। अधोकुंचन के कारण प्रारम्भ में पुष्प कलिका नीचे की ओर झुकी रहती है। बाद में अधोवृद्धिवर्तन के कारण पुष्पवृन्त सीधा हो जाता है।

2. प्रेरित गतियाँ (Induced = paratonic movements) – ये गतियाँ मुख्यतः निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं -

(A) अनुवर्तनी गतियाँ = दिशात्मक गतियाँ (Tropic movements = directional movements)
(B) अनुकुंचन गतियाँ = अदिशात्मक गतियाँ (Nastic movements = non-directional movements)


(A) अनुवर्तनी गतियाँ (Tropic movements = tropisms)

ये गतियाँ पौधे के किसी अंग में एक पार्श्वीय दिशा से प्रभावित उद्दीपन के कारण होती हैं और उत्पन्न हुई अनुक्रिया से पौधों के अंगों के विभिन्न भागों में असमान रूप से वृद्धि होकर वक्रता आ जाती है। इन गतियों में अनुक्रिया की दिशा उद्दीपन की दिशा पर निर्भर करती है। उद्दीपन के आधार पर इस प्रकार की गतियों का निम्नलिखित वर्गीकरण किया जा सकता है—

(a) प्रकाशानुवर्तन (Phototropism=heliotropism) — जब पौधों के अंगों (apices) की गति प्रकाश-उद्दीपन के प्रभाव द्वारा निर्धारित होती है तब इसे प्रकाशानुवर्तन कहते हैं । पौधों के कुछ अंग, जैसे तना, प्रकाश की ओर गति करते हैं, इन्हें धनात्मक प्रकाशानुवर्ती (positively phototropic) कहते हैं तथा कुछ अंग प्रकाश के विपरीत दिशा में गति करते हैं, जैसे जड़ें, इन्हें ऋणात्मक प्रकाशानुवर्ती (negatively phototropic) कहते हैं। यदि गमले में लगे एक छोटे पौधे को एक ऐसे बक्से में रखें जिसमें एक ओर एक छिद्र खुला होने के कारण प्रकाश केवल उधर से ही मिले तब तने का शीर्ष भाग प्रकाश की ओर मुड़ जाता है। यह क्रिया ऑक्सिन के प्रभाव से होती है।

पौधों में वक्रण गतियाँ (curvature movements in plants)|hindi


(b) गुरुत्वानुवर्तन (Geotropism or gravitropism) — गुरुत्वाकर्षण बल (gravitational force) के कारण पौधों के अंगों में होने वाली गति गुरुत्वानुवर्तन (geotropism) कहलाती है। प्राथमिक जड़ें सदा गुरुत्व केन्द्र की ओर (पृथ्वी की ओर) गति करती हैं, इसे धनात्मक गुरुत्वानुवर्तन (positive geotropism) कहते हैं तथा मुख्य तना गुरुत्वाकर्षण के विपरीत गति करता है, इसे ऋणात्मक गुरुत्वानुवर्तन (negative geotropism) कहते हैं।

यदि कुछ बीजांकुरों (seedlings) को एक अँधेरे बक्से में विभिन्न दिशाओं में रखा जाये तब हम देखते हैं कि जड़ें सर्वदा पृथ्वी की ओर तथा तना पृथ्वी की विपरीत दिशा में वृद्धि करता है।

क्लाइनोस्टेट (clinostat) नामक उपकरण का उपयोग गुरुत्वाकर्षण प्रभाव प्रमाणित करने के लिये किया जाता है। इसमें एक घड़ी होती है जिसकी मुख्य धुरी से एक प्लेट लगी होती है जो घड़ी के साथ ही और उसी सामयिक वेग से घूमती है। प्लेट के ऊपर एक छोटा गमला स्थित रहता है जिसमें एक पौधा लगा दिया जाता है।

पौधों में वक्रण गतियाँ (curvature movements in plants)|hindi

ऊपर चित्र में दिखलाये गये ढंग से क्लाइनोस्टेट को क्षैतिज अवस्था में रखते हैं। घड़ी चलने के कारण पौधा चक्कर लगाता रहता है जिससे पौधे का कोई भी भाग अधिक समय तक एक दिशा में नहीं रह पाता। फलस्वरूप पौधा क्षैतिज अवस्था में बढ़ता है और इस पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव नहीं पड़ता। यदि घड़ी को रोक दिया जाये जिससे घूर्णन (rotation) न हो सके तब गुरुत्वाकर्षण का एक पार्श्वीय उद्दीपन प्रभाव पौधों के अंगों पर पड़ता है जिसके कारण तने के अग्रिम भाग ऊपर को मुड़कर ऊर्ध्व स्थिति में (ऋणात्मक गुरुत्वानुवर्तन) तथा मुख्य जड़ का अग्रिम भाग पृथ्वी की ओर मुड़कर ऊर्ध्व स्थिति में (धनात्मक गुरुत्वानुवर्तन) वृद्धि करता है। ये गतियाँ भी ऑक्सिन के कारण होती हैं।

(c) जलानुवर्तन (Hydrotropism) — जब पौधों के किसी अंग की गति जल अथवा नमी के उद्दीपन के कारण होती है तो इसे जलानुवर्तन कहते हैं। जड़ें नमी की ओर बढ़ती हैं और इन्हें धनात्मक जलानुवर्ती (positively hydrotropic) कहते हैं। इसे निम्नलिखित प्रयोग द्वारा सिद्ध किया जा सकता है-तारों के जाल की बनी एक छिछली छलनी में गीली मिट्टी भरकर उसमें बीज बो दिये जाते हैं और छलनी को कुछ तिरछा रखा जाता है। प्रारम्भ में जड़ें ऊर्ध्व दिशा से सीधे नीचे की ओर वृद्धि करके छलनी के छिद्रों से बाहर निकल जाती हैं परन्तु इसके बाद मुड़कर नमीयुक्त मिट्टी की ओर वृद्धि करती हैं और छलनी की पेंदी के सहारे लग जाती हैं। इसी प्रकार से किसी पेटी में लकड़ी का नम बुरादा भरकर बीज अंकुरित करते हैं और पेटी के मध्य में पानी से भरा मिट्टी का गमला रखते हैं जिससे पानी रिसता रहता है। अंकुरित हो रहे बीजों की जड़ें जल के प्रभाव के कारण गमले की ओर गति करती हैं। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि जलानुवर्ती गति, गुरुत्वानुवर्ती गति से अधिक शक्तिशाली होती है।
पौधों में वक्रण गतियाँ (curvature movements in plants)|hindi



(d) स्पर्शानुवर्तन (Thigmotropism=haptotropism) — कुकुरबिटेसी कुल के पौधों के प्रतान (tendril), क्लीमैटिस (Clematis) के पर्णवृन्त से बने प्रतान तथा ग्लोरियोसा (Gloriosa) के पर्ण-शीर्ष भाग से बने प्रतान दूसरे पौधों के चारों ओर लिपटते हैं। यह एक ऐसी गति के कारण होता है जो वृद्धिजनित वक्रता के कारण होती है और स्पर्श या सम्पर्क या घर्षण उद्दीपन द्वारा प्रेरित होती है। इस गति में प्रतान का वह भाग जो आधार को स्पर्श नहीं करता अधिक वृद्धि करता है और जो भाग आधार को स्पर्श करता है, कम वृद्धि करता है और इसी कारण प्रतान आधार के चारों ओर घेरा बनाता हुआ लिपटता जाता है।

(e) रसायनानुवर्तन (Chemotropism) – जब पौधे के किसी अंग की गति किसी रासायनिक पदार्थ के उद्दीपन से प्रभावित होती है तो उसे रसायनानुवर्तन कहते हैं, जैसे परागकण (pollen grains) किसी जायांग (gynoecium) के वर्तिकाग्र (stigma) पर अंकुरित होकर अपनी पराग नलिका (pollen tube) का विकास करते हैं और वर्तिका (style) के अन्दर होते हुए वृद्धि करते हैं। यह वृद्धि पुष्प के अन्दर उत्पन्न कुछ रासायनिक पदार्थों के कारण होती है। कवक सूत्र (fungal hyphae), शक्कर एवं पेप्टोन्स की ओर मुड़कर धनात्मक रसायनानुवर्तन प्रदर्शित करते हैं तथा अपने उत्पादित पदार्थों के तथा अम्लों एवं क्षारों के प्रति ऋणात्मक गति दिखलाते हैं ।

(f) तापानुवर्तन (Thermotropism) — जब पौधे का कोई अंग गर्मी या ठण्ड से प्रभावित होकर एक ओर मुड़ता है तो उसे तापानुवर्तन कहते हैं, जैसे एक बक्से में रखे बीजांकुर अधिक ताप की ओर मुड़ते हैं।

(g) अन्य अनुवर्ती गतियाँ (Other Tropic Movements) — कुछ वनस्पति शास्त्रियों ने पौधों में घाव के कारण क्षैतिज अनुवर्तन (traumatotropism), विद्युत् के प्रभाव से विद्युत् अनुवर्तन (electro tropism), अन्धकार के प्रभाव से तमोनुवर्तन (skototropism) तथा वायु के प्रभाव से वातानुवर्तन (aerotropism) आदि गतियों का वर्णन भी किया है। गेहूँ के नवांकुरों (seedlings) में जड़ों के उत्तर व दक्षिण दिशा में अधिक उत्पन्न होने की प्रवृत्ति देखी गयी है। सम्भवतः इस क्रिया में चुम्बकीय बल का प्रभाव होता है। इस प्रक्रिया को भूचुम्बकीयनुवर्तन (geomagnetotropism) कहा गया है।



(B) अनुकुंचन गतियाँ (Nastic movements)

इस प्रकार की गतियाँ प्रकाश, ताप तथा स्पर्श उद्दीपन के कारण होती हैं। उद्दीपन किसी भी ओर से मिले, गति एक पूर्व निश्चित दिशा में ही होगी, अर्थात् उद्दीपन की दिशा का प्रभाव गति की दिशा पर नहीं पड़ता। इस प्रकार की गतियों का वर्गीकरण निम्नलिखित है-

(i) कम्पानुकुंचनी गति (Seismonastic movement) – मीमोसाइडी उपकुल के पौधे छुईमुई (Mimosa pudica = Sensitive plant=Touch-me not plant) के किसी भाग पर आघात करने या स्पर्श करने या वर्षा की बूँदों से अथवा गमले को हिलाने से पत्रक बन्द हो जाते हैं और पत्तियाँ नीचे की ओर लटक जाती हैं। उद्दीपन हटने के कुछ समय पश्चात् पत्तियाँ अपनी पूर्व दशा में आ जाती हैं। यह गति पत्रकों और पत्तियों के फूले हुए पत्राधार और पर्णाधार (pulvinus) में उपस्थित मृदूतक कोशिकाओं के आशून (turgid) तथा ढीला (flaccid) हो जाने पर निर्भर करती है। पत्राधार से नीचे के आधे भाग में पतली भित्ति वाली कोशिकाएं होती हैं और इनके बीच बड़े अन्तराकोशीय स्थान होते हैं, परन्तु पर्णाधार के ऊपर के आधे भाग में मोटी भित्ति वाली कोशाएँ होती हैं तथा अन्तराकोशीय स्थान बहुत कम होते हैं। जिस समय उद्दीपन नहीं मिलता तो कोशाएँ पूर्ण स्फीति दशा में होती हैं और पत्ती सीधी तनी रहती है। उद्दीपन मिलने पर नीचे की ओर स्थित कोशाओं का जल उनके बीच स्थित अन्तराकोशीय स्थानों में चला जाता है और ये कोशाएँ श्लथ (flaccid) अवस्था में आ जाती हैं जिस कारण पत्राधार की ऊपर की कोशाएँ नीचे की ओर दबाव डालती हैं और पत्ती मुरझाकर लटक जाती है। उद्दीपन हटने के कुछ समय पश्चात् पत्राधार में नीचे की ओर स्थित श्लथ (flaccid) अवस्था की कोशाएँ अन्तराकोशीय स्थान से जल का अवशोषण करती हैं और फिर स्फीति (turgid) अवस्था में आ जाती हैं जिससे पत्ती फिर से पहली सीधी तनी अवस्था में आ जाती है।
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(ii) निशानुकुंचनी गतियाँ (Nyctinastic or sleeping movements) – पौधों के अंगों में, जैसे पुष्पों के बाह्यदल (petals) और दल (sepals) तथा पत्तियाँ प्रकाश या ताप के उद्दीपन से प्रभावित होकर सीधी तनी रहती हैं या झुक जाती हैं। उद्दीपन के आधार पर इन्हें दो भागों में विभाजित किया जाता है—
  • प्रकाशानुकुंचनी गति (Photonastic movement) – ऑक्जेलिस (Oxalis) के पौधे की पत्तियाँ एवं पुष्प दिन के समय क्षैतिज स्थिति में सीधे तने रहते हैं, परन्तु रात्रि आते ही नीचे की ओर लटक जाते हैं। इस प्रकार यह क्रम रात दिन चलता रहता है। इन गतियों को नैश-गतियाँ (sleeping movements) कहते हैं।
  • तापानुकुंचनी गति (Thermonastic movement) — क्रोकस (Crocus) एवं ट्यूलिप (Tulipa) के पुष्प अधिक ताप पाने पर खुल जाते हैं तथा कम तापक्रम पर बन्द हो जाते हैं।
  • स्पर्शानुकुंचनी गति (Haptonastic movement) — जिस समय ड्रोसेरा (Drosera) की पत्ती के सीमान्त (marginal) ग्रन्थिरोम (glandular hair) किसी वस्तु से छू जाते हैं, जैसे एक पतंगे के शरीर से, तब ग्रन्थिरोम में स्पर्शानुकुंचनी गति होती है जिस कारण पतंगा पत्ती के केन्द्र में स्थित ग्रन्थिरोमों के साथ लग जाता है। ये ग्रन्थरोम उद्दीप्त होकर सीमान्त ग्रन्थिरोमों को पतंगे के ऊपर आते हैं। इस प्रकार बाद में मुड़े ग्रन्थिरोमों के मुड़ने को स्पर्शानुवर्ती (chemotropic) गतियों में रखा जाता है जबकि पहले मुड़े सीमान्त ग्रन्थिरोमों के मुड़ने को स्पर्शानुकुंचनी (chemonastic) गति में रखा जाता है।


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